Tuesday, June 30, 2009

हालात

आंसुओं आंख की दहलीज़ पे आया न करो
घर के हालात ज़माने को बताया न करो
लोग मुठ्ठी में नमक लेकर फिरा करते है
ज़ख्म तुम अपने किसी को भी दिखाया न करो
आंसुओं आंख की ......................................
घर के हालात .........................................
साथ खुशबू के अहाते में फिरा करते है
फूल के पेड़ को आंगन में लगाया न करो
बांस की तपती हुई आग में जलने दो मुझे
आस के बादलों सर पर मेरे ये साया न करो
आंसुओ आंख की ........................
घर के हालात .....................................
आज के दौर का पैगाम येही है लोगों
कोई गिर जाए भूले से तो उठाया न करो
आंसुओ आँख ...........................
घर के हालात .............................

Sunday, June 28, 2009

ग़ज़ल

तेरी यादों से चमन दिल का सजा रखा है
तेरी राहों में दिया दिल का जला रखा है
खूने दिल खूने जिगर खूने तमन्ना देकर
तेरी तस्वीर से हर रंग सजा रखा है
तेरी ऑंखें है ग़ज़ल होंठ कँवल मैंने कहा
पैकरे हुस्न तुझे गीत बना रखा है
तेरी तारीफ तो अशार में मुमकिन नही
गोया हर शेअर को सहकार बना रखा है
अब तेरे नाम से दुनिया मुझे पहचानेगी
अपना सब कुछ तेरी राहो में लुटा रखा है
मै की एक लफ्ज़ वफ़ा दर्द है तफसीर मेरी
ख़ुद को हर दौर में सूली पर चढा रखा है
शीश ऐ दिल तो निगाहों से चटक जाता है
अपने हाथ में क्यों संग उठा रखा है
राजदा अपना सितारोंम को बनाया है "अलीम"
किस्सा ऐ इश्को वफ़ा उनको सुना रखा है

Wednesday, June 24, 2009

कसमे वादे

ये किताबों के किस्से फसानो की बातें
निगाहों की झिलमिल जुदाई की रातें
मोहब्बत की कसमे निभाने के वादे
यह धोका वफ़ा का ये झूठे इरादे
ये बातें किताबी ये नज्में पुरानी
ये इनकी हकीकत न इनकी कहानी
न लिखना इन्हे न महफूज़ करना
ये जज्बे है इनको महसूस करना

Sunday, June 7, 2009

इश्क प्यार और मोहब्बत

अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,
वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं....
सबको प्यार देने की आदत है हमें,
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,
कितना भी गहरा जख्म दे कोई,
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,
सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,
जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,
आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,
अगर रख सको तो निशानी,
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं"

लिखने वाला कोई अनजान ......

Friday, June 5, 2009

ग़ज़ल

जाने वो हमसे क्या ले गए

उनसे नज़रें मिली मिली दिल चुरा ले गए

शायद कहना था उनको कोई बात हमे

एक पड़ोसी से हमारा पता ले गए

अब उनसे इस कदर हो गई है मोहब्बत हमें

वोह शमा के परवाने बना ले गए

क्या कहें उनके इश्क वो दीवाने हम

लाख मन्नत के वोह हमको अपना बना ले गए

अब बन गई हैं वोह हमारी शरीक ऐ हयात

अपने खवाबों की शहजादी हम बना ले गए

जाने वोह हमसे क्या ले गए

उनसे नज़रें मिली और दिल चुरा ले गए

Thursday, June 4, 2009

ग़ज़ल

जो कहना था उनसे हम कुछ कह न सकें
की तुम्ही से मोहब्बत और तुम्ही से है चाहत
वोह छुपछुप के देखना और खवाबों में मिलना
वोह उनके नाज़ ओ नखरे वो उनका खिलखिलाना और चहचहाना
मदहोश था जो हम कुछ न कह सके
की तुम्ही से मोहब्बत और तुम्ही से है चाहत
वोह नागन जैसी उनकी जुल्फें उनपर लातों का पहरा
दीवाना हमे बना दे उनकी निगाहों का गहना
जो पहली मुलाक़ात में मै उन से न कह सके
की तुम्ही से मोहब्बत वो तुम्ही से है चाहत
वोह बेवफा कभी न थे रही हमेशा वफ़ा की मूरत
वोह उनकी अदाएं बला की सी थी खूबसूरत
की वक्त ऐ जंजीर ने की रुसवाई जो न कह सके
की तुम्ही से मोहब्बत और तुम्ही से है चाहत








Tuesday, June 2, 2009

गीत

तारीफों को ओढ़ने वाले ऊँची ऊँची छोड़ने वाले
लाख ख़ुद को बढ़ा चढ़कर अब फूलों में तोले
लेकिन दुनिया कुछ भी बोले दर्पण झूट न बोले...........
सच्चाई बिन चाह न होती तन्हाई बिन राह न होती
प्यार की प्यास का अर्क अलग है अंगडाई बिन आह न होती
लाख तू मेरे नाम लिखे तकियों को खूब भिगो ले
लेकिन कजरारी आँखों का सावन न बोले
तारीफों को ओढ़ने वाले ऊँची ऊँची .....................
लाख ख़ुद को बढ़ा .................................
की गज़लों के है अपने मौसम गीतों के है अपने सरगम
पुरवा पचुवां सब बेमानी लहराते है प्यार के परचम
लाख तू अपने खुली हवा में तनहा तनहा डोले
लेकिन ये सर्दी से ठिठुरता तन मन झूट न बोले
तारीफों को ओढ़ने वाले............................
की मन सीनों तक आजाता है तन बांहों तक आजाता है
चाहे कितना कोई छुपा ले दिल होंठों तक आजाता है
लाख तू अपने तर्कों के शब्दों को रंग से धो ले
पर चेहरे के पल पल का परिवर्तन झूट न बोले
तारीफों को ओढ़ने वाल्व ऊँची ऊँची छोड़ने वाले
लाक ख़ुद को बढ़ा चढाकर अब फूलों में तोले
लेकिन दुनिया कुछ भी बोले दर्पण झूट न बोले