Tuesday, March 30, 2010

दीए चाहत के


आँखों में बस के दिल में समां कर चले गए
ख्वाब्दीदा ज़िन्दगी थी जगा कर चले गए


चेहरे तक आस्तीन वह लाकर चले गए
क्या राज़ था की जिसको छुपाकर चले गए


रगरग में इस तरह समां कर चले गए
जैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए


आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
एक आग सी वह और लगाकर चले गए


लैब थर थरा के रह गए लेकिन वो ऐ "अलीम "
जाते हुए निगाह मिलाकर चले गए .

Saturday, March 20, 2010

ज़ख्मे दिल


रोज़ एक ज़ख्म नया दिल पे लगाया तूने
मेरी हंसती हुई आँखों को रुलाया तूने


खो चुका था मै गमो दर्द के सन्नाटों में
मेरी बेताब तमन्ना को जगाया तूने


मेरी उल्फत को न समझी है न समझेगी कभी
जब भी फुर्सत मिली इस दिल को दुखाया तूने


गैर की बज़्म सजाने के लिए तूने सनम
मुझसे हर रोज़ बहाना ही बनाया तूने


तेरा एक एक सितम हंस के "अलीम" ने सहा
उसके लैब पर कभी शिकवा तो न पाया तूने

Wednesday, March 17, 2010

यादें बस यादें


देखकर वह हमें मुस्कुराने लगे
तीर नज़रों के दिल पर चलाने लगे


वो हमे किस्सा -ए-गम सुनाने लगे
अश्क आँखों में अपनी भी आने लगे


उनकी यादों को जब हम भुलाने लगे
वह हमे और भी याद आने लगे


नब्ज़ रुकने लगी दिल धड़कने लगा
जब वह चेहरे स पर्दा हटाने लगे


तुझको पाने के अरमा थे दिल में बहुत
इतना कहने में हमको ज़माने लगे


आज "अलीम" वो जब मिले राह में
जाने क्यों मुझसे नज़रे चुराने लगे

Tuesday, March 16, 2010

चले आओ तुम आज


वह कह रहा था उससे मुझे प्यार भी नहीं
उसका तो मै रहा था तलबगार भी नहीं


तेरे बिना रजा के भी पा सकता था तूझे
मेरे लिए बहुत था यह दुशवार भी नहीं


एक दिल को कितने टुकडो में आया है बाँट वह
अब तो बचेगा कोई खरीदार भी नहीं


खामोश उसपे ज़ुल्मो सितम देखते रहे
हम जानते थे वह था खतावार भी नहीं


सारे बहाने छोड़ चले आओ आज तुम
बारिश के आज है कोई आसार भी नहीं


खवाबों में जिसको दिल में बसाए है उम्र भर
बरसो स उसका हो सका दीदार भी नहीं


नफरत है उसको मुझसे तो क्यों हो मोहब्बत
इतने तो हम है "अलीम" बेकार भी नहीं





Tuesday, March 9, 2010

गीत


चालक गयी उसकी गगरिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई


जाने कैसे बरखा आई
भीगा बिचौना भीगी रजाई


बैरी पवन ऐसे जोर स आई
की उड़ गयी छापरिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई ...


मेले वो गयी थी मारे ख़ुशी मा
गोटे वोह लगा के चुनरी मा


सरकश वाले शतर गली मा
हेरे गयी उसकी बिंदिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई


घर में उसके काँप उठे सब डरकर
रात मा सांप निकला जब छत पर


वोह दौड़ी जब डंडा लेकर
भुझाये गयी उसकी डिबिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई


घर से बजरिया मा वो चल दी
ले ली न गुड , मिर्चा और हल्दी


फिर जल्दी मा तसले के बल्दी
ले आई वो कटोरिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई .

Thursday, March 4, 2010

ग़ज़ल

सब्र और ज़ब्त की इन्तेहा हो गयी

सर ज़मीने वतन कर्बला हो गयी ।

दिल लगाने की हम स खता हो गयी

ज़िन्दगी किस कदर बे मज़ा हो गयी ।

जब स बचपन गया और शबाब अगया

साड़ी शोखी शरारत हवा हो गयी ।

सर ज़माने के आगे झुकाना पड़ा

जब नमाज़े मोहब्बत क़ज़ा हो गयी

आज फिर उनकी नज़रों की नज़रें मिली

फिर धनक रंगे दिल की फ़ज़ा हो गयी ।

सब्र और ज़ब्त की इन्तहा हो गयी

सर ज़मीने वतन कर्बला हो गयी