Tuesday, March 24, 2009

ग़ज़ल

सियाह शब् से ताल्लुक जो सब ने तोड़ लिया
हवाओं ने भी चिरागों से मुंह मोड़ लिया
जो आसमान की उंचाईयों से बाज़ बड़ा
तो जुगनुओं को सितारे समझ के तोड़ लिया
वोह और कोई नही तितलियों का दुश्मन है
तमाम फूलों का जिसने अर्क निचोड़ लिया
वोह अपने आपको फिर कोहे कुन कहता है
ज़रा पहाड़ किसी ने जो तोड़ फोड़ लिया
जो गुडिया गुड्डे की शादी रचाई बच्चों ने
कहानियो ने वही से अजीब मोड़ लिया
फिर आशियानों का पर्सा दिया परिंदों को
हवा ने खूब दरख्तों को जब झिंझोड़ लिया

No comments:

Post a Comment

ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath