मेरे अश्क जितने निकलते रहे
दिए मेरे पलकों पर जलते रहे
वोह लम्हों की कैसी मुलाकात थी
की ता जीस्त अरमा मचलते रहे
वो शिकवे गिले करके चुप हो गए
मगर करवटे हम बदलते रहे
किसी ने बुझाने की न कोशिश की
जो घर जल रहे थे वो जलते रहे
नशेमन हमारा जला तो जला
तुम्हरे तो अरमा निकलते रहे
"अलीम" जलने वालो का क्या तज़किरा
सदा जलने वाले तो जलते रहे
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