Friday, May 22, 2009

ग़ज़ल


उनकी उल्फत में उतर जाने के बाद
किस तरह इकठ्ठा करू ख़ुद को बिखर जाने के बाद
जीते जी करता रहू गा फ़र्ज़ उल्फत का अदा
कम से कम याद आऊंगा मैं उनको मर जाने के बाद
मुझसे मिलने की ज़रूरत भी नही उनको रही
बे मुरव्वत हो गए किस्मत संवर जाने के बाद
उसको भले न हो मेरी चाहत का एहसास आज
याद बहुत आउंगा उसे एक दिन चले जाने के बाद

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