Sunday, July 5, 2009

ghazal

चेहरा मेरा था निगाहें उसकी

खामोशी में भी बातें उसकी

मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गई

शेयर कहती हुई आंखें उसकी

शोख लम्हों का पता देने लगी

तेज़ होती हुई सांसे उसकी

ऐसे मौसम भी गुजारे हमने

सुबहें जब अपनी थी शामें उसकी

ध्यान में उसके ये आलम था कभी

आंख महताब की यादें उसकी

ख़ुद पे भी चुभती नही जिसकी नज़र

जानता कौन ज़बान उसकी

नींद इस सोच से टूटे अक्सर

किस तरह कटती है रातें उसकी

दूर रहकर भी सदा रहती है

मुझको थामें हुए बाहें उसकी

1 comment:

  1. बहुत ख़ूबसूरत, रोमांटिक और बेहतरीन ग़ज़ल लिखने के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

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