Wednesday, May 5, 2010

वफ़ा

कसम खुदा की हमे तुमसे प्यार आज भी है
वो दोस्ती की तड़प बरकरार आज भी है

मेरी वफ़ा का तुझे ऐतबार हो की न हो
तेरी वफ़ा का ऐतबार आज भी है

तेरी जुदाई को सदिया गुज़र गयी लेकिन
तेरी जुदाई में दिल अश्कबार आज भी है

हमारी चाह में कोई कमी नहीं आई
तुम्हारे वास्ते सब कुछ निसार आज भी है

वो एक नज़र मुझे बर्बाद कर दिया जिसने
उसी नज़र का मुझे इंतज़ार आज भी है

वफ़ा का रंग मोहब्बत की बू नहीं मिलती
चमन में होने को यू तो बहार आज भी है

तेरी नज़र से जो मैंने पिया था जाम कभी
उस एक जाम का "हमदम" खुमार आज भी है

1 comment:

  1. Kisi nazar ko tera intezaar aaj bhi hai.....se inspire lagi aapki creation...bahut sunder likha hai aapne .....last sher kaafi pasand aaya.तेरी नज़र से जो मैंने पिया था जाम कभी
    उस एक जाम का "हमदम" खुमार आज भी है

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath