Sunday, May 9, 2010

सहारा

डूब जाने की तलब दिल में उभर आई है
उसकी आँखों में अजब झील सी गहरे है

काश उसे भी मेरी हालत का पता हो जाता
रात है और गमे हिज्र की पुरवाई है

चाँद भी डूब गया बुझ गए तारे भी तमाम
मेरी आँखों में मगर नींद नहीं आई है

गम की तौहीन है इजहारे गमे दिल करना
और चुप रहने में शायद तेरी रुसवाई है

तेरी यादों ने दिया बढ़के सहारा ए दोस्त
जबकि कश्ती मेरी तूफ़ान से टकराई है

गमे जाना गमे दुनिया गमे हस्ती गमे दिल
ज़िन्दगी कितने मराहिल से गुज़र आई है

मुस्कुरा के जो हर एक दर्द सहा है मैंने
ए गमे दोस्त तेरी हौसला अफजाई है

1 comment:

  1. bahut acchhi gazel...hamesha ki tareh...lajawaab.
    lekin aaj kal aap hain kaha....nazar hi nahi aate....
    ab kya karu....chup rahne bhi to ruswayi hai...:)
    isliye kah rahi hu.

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