Friday, April 17, 2009

ग़ज़ल

तू किसी रास्ते का मुसाफिर रहे
तेरी एक - एक ठोकर उठा लाऊँगा
अपनी बेचैन पलकों से चुन-चुन के मै
तेरे रास्ते का patthar उठा लाऊँगा
मै harf प्यार का मोड़ सकता नही
zindagi me tujhe छोड़ सकता नही
की तू अगर मेरे घर तक नही आयेगा
मै तेरे घर के pass यह घर उठा लाऊँगा
की ansuvo का मौसम चला जाएगा
तेरे lab पे tabassum न ajayega
मुझको दिल की ज़मीन से आवाज़ दे
asmaan तेरे der पर उठा लाऊँगा
यह zamaana है bahra fakat हम nasheen
chnd katre न उससे मिल payega
एक किसी रोज़ दिल से आवाज़ दे
तेरी खातिर samandar उठा लाऊँगा

1 comment:

ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath