Thursday, April 30, 2009

ग़ज़ल

जुस्तुजू खोये हुए की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब् सफर करते रहे
रास्तों का इल्म था हमको न सम्तो की ख़बर
शहरे न मालूम की चाहत मगर करते रहे
हमने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर को
तेरे जाने की ख़बर दीवारों दर करते रहे
वोह न आएगा हमे मालूम था उस शाम भी
इंतज़ार उसका मगर कुछ सोचकर करते रहे
आज आया है हमे भी उन उदानो का ख्याल
जिनके तेरे जोमे में बे बालो पर करते रहे \

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