Tuesday, May 5, 2009

ग़ज़ल

उल्फत का यह नशा है पीने में क्या खराबी
कायम वफ़ा है दिल में मिलती है कामयाबी,
बेदाग़ ज़िन्दगी का मुझको सिला मिला है
करता हु दिल से बातें कुछ भी नही किताबी
तनहा जिए बहुत दिन मंजिल पर अगया हूँ
नींदों में हर घड़ी अब सपने तो है गुलाबी
अब दूर रहना मुझको हरगिज़ नही गवारा
किस्मत मिलाये जिससे मिलने में क्या खराबी
'अलीम' ज़िन्दगी का रूतबा बहुत बड़ा है
दुनिया कहे भले ही कहती रहे शराबी

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