Saturday, May 23, 2009

ग़ज़ल

अपने सब चेहरे छुपा रखे है आईने में
मैं ने कुछ फूल खिला रखे है आईने में
तुम भी दुनिया को सुनाते हो कहानी झूटी
मैं ने भी परदे गिरा रखे है आईने में
फिर निकल आएगी सूरज की सुनहरी ज़ंजीर
ऐसे मौसम भी उठा रखे है आईने में
मैं ने कुछ लोगों की तस्वीर उतारी है "अलीम"
और कुछ लोग छुपा रखे है आईने में

No comments:

Post a Comment

ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath