Saturday, May 23, 2009

ग़ज़ल

आँखों में अगर आज वो महताब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता
कमरे में अगर खिड़की से कुछ फूल न गिरते
दिल तेरे लिए इस तरह बेताब न होता
बस्ती में कभी इश्क की आवाज़ न आती
दरिया अगर नगमा सैलाब न होता
आंखों में अगर आज वो महताब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता

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