तारीफों को ओढ़ने वाले ऊँची ऊँची छोड़ने वाले
लाख ख़ुद को बढ़ा चढ़कर अब फूलों में तोले
लेकिन दुनिया कुछ भी बोले दर्पण झूट न बोले...........
सच्चाई बिन चाह न होती तन्हाई बिन राह न होती
प्यार की प्यास का अर्क अलग है अंगडाई बिन आह न होती
लाख तू मेरे नाम लिखे तकियों को खूब भिगो ले
लेकिन कजरारी आँखों का सावन न बोले
तारीफों को ओढ़ने वाले ऊँची ऊँची .....................
लाख ख़ुद को बढ़ा .................................
की गज़लों के है अपने मौसम गीतों के है अपने सरगम
पुरवा पचुवां सब बेमानी लहराते है प्यार के परचम
लाख तू अपने खुली हवा में तनहा तनहा डोले
लेकिन ये सर्दी से ठिठुरता तन मन झूट न बोले
तारीफों को ओढ़ने वाले............................
की मन सीनों तक आजाता है तन बांहों तक आजाता है
चाहे कितना कोई छुपा ले दिल होंठों तक आजाता है
लाख तू अपने तर्कों के शब्दों को रंग से धो ले
पर चेहरे के पल पल का परिवर्तन झूट न बोले
तारीफों को ओढ़ने वाल्व ऊँची ऊँची छोड़ने वाले
लाक ख़ुद को बढ़ा चढाकर अब फूलों में तोले
लेकिन दुनिया कुछ भी बोले दर्पण झूट न बोले
bahut hi acchha likha hai . kabhi mere blog par bhi aayen.
ReplyDeleteपहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरी शायरी पसंद आई!
ReplyDeleteआप इतना ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखते हैं कि कहने को अल्फाज़ नहीं हैं! आपकी हर एक ग़ज़ल काबिले तारीफ है!
bahut aachi.......
ReplyDeletebhaiya kunwar javed ko ab is geet ko phir se likhna padegaa shaayad. kyoki usne jo likhaa use tumne sanshodhit kar diyaa hai kahee kahee
ReplyDeleteaise hee lage rahe to ek din gazal samraat ban jaoge bhaiyaa. shubh kaamna
vaise mere paas kunwar javed kee is gazal kaa record hai.