Thursday, June 4, 2009

ग़ज़ल

जो कहना था उनसे हम कुछ कह न सकें
की तुम्ही से मोहब्बत और तुम्ही से है चाहत
वोह छुपछुप के देखना और खवाबों में मिलना
वोह उनके नाज़ ओ नखरे वो उनका खिलखिलाना और चहचहाना
मदहोश था जो हम कुछ न कह सके
की तुम्ही से मोहब्बत और तुम्ही से है चाहत
वोह नागन जैसी उनकी जुल्फें उनपर लातों का पहरा
दीवाना हमे बना दे उनकी निगाहों का गहना
जो पहली मुलाक़ात में मै उन से न कह सके
की तुम्ही से मोहब्बत वो तुम्ही से है चाहत
वोह बेवफा कभी न थे रही हमेशा वफ़ा की मूरत
वोह उनकी अदाएं बला की सी थी खूबसूरत
की वक्त ऐ जंजीर ने की रुसवाई जो न कह सके
की तुम्ही से मोहब्बत और तुम्ही से है चाहत








1 comment:

  1. shringar ras ka bhut hi achchha chitran
    prayasi ke roop or apni khamosi ka bhut hi achchha barnan

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath