Friday, July 3, 2009

वफ़ा (ग़ज़ल)

कहानी प्यार की तुमको सुनाना चाहता हूँ
तेरे घर को इन हाथों से सजाना चाहता हूँ
मेरी किस्मत में शायद तू नही है फिर भी सजनी
मैं वादे सब वफाओं के निभाना चाहता हूँ
खुशी मुझसे गुरेज़ा है मगर फिर भी मेरी जान
खिजा के रुत में भी गुलशन खिलाना चाहता हूँ
ज़रा सी देर को समझो मेरी जान मैं तेरा हूँ
दिल को इस हँसी धोके में लाना चाहता हूँ
सितम है मुझसे सब चीन गया लेकिन मैं अब भी
तुमाहरे खवाब आँखों में बसाना चाहता हूँ
मेरी साड़ी तमन्नाएं बेकार जायेगी लेकिन
मोहब्बत सिर्फ़ तुमसे है बताना चाहता हूँ

2 comments:

  1. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं तो निशब्द हो गई!

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  2. ज़रा सी देर को समझो मेरी जान मैं तेरा हूँ
    दिल को इस हँसी धोके में लाना चाहता हूँ

    वाह...वाह...धीरे धीरे मंजिल की और बढ़ते कदम .....बहुत खूब....!!

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