Wednesday, August 5, 2009

ग़ज़ल

अब उनकी बेरुखी का न शिकवा करेंगे हम
लेकिन यह सच है उनको ही चाहा करेंगे हम ।
जायेंगे वो हमारी गली से गु़ज़र के जब
बेबस निगाह से उन्हें देखा करेंगे हम ।
तन्हाईयों में याद जब उनकी सताएगी
दिल और जिगर को थाम के तदपा करेंगे हम
करते नही कबूल मेरी बंदगी तो क्या
बस उनके नक्शे पा पे ही सजदा करेंगे हम ।
"अलीम" अगर वो यारे हसीं मेहरबान हो
जीने की थोडी और तम्मान्ना करेंगे हम ।


1 comment:

  1. इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेर सारी शुभकामनायें!

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath