Wednesday, August 5, 2009

ग़ज़ल

यूँ लगा उनके रूठ जाने से
अब वफ़ा उठ गई ज़माने से
ऐसे अनजान बन गए गोया
आशना वो न थे फ़साने से
सर्द रुत के हँसी सवेरे में
वो बिचादते है किस बहने से
मैंने पलकों पे जो सजाये थे
खवाब टूटे है वो सुहाने से
कौन " अलीम" उस नगर जाए
शहर वीरान है उनके जाने से

4 comments:

  1. bahut acha likha aapne
    halanki mein khud kavita nahi kah sakti par dusare logo ke khayalayt padna bahut accha lagta hai.
    thanx for sharing your feelings in a poetic manner

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  2. बहुत बढ़िया और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! वैसे आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है! आपका हर एक ग़ज़ल मुझे बेहद पसंद है !

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  3. ek achhee ghazal ke liye
    m u b a r a k b a a d .
    ---MUFLIS---

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  4. bahut aachi rachna haa.........

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath