Tuesday, November 17, 2009

ग़ज़ल

उनसे नज़रें मिली और दिल चार हो गया
यूँ लगने लगा हमको उनसे प्यार हो गया ।
अब तो बेकरारी छाने लगी हर वक्त
यह समझ कर की अब फिर सिलसिले मुलाकात हो
यह सोच कर उनपर दिल निसार हो गया
यूँ लगने लगा हमको उनसे प्यार हो गया ।
यह सिर्फ़ मोहब्बतें अलफ़ाज़ है और कुछ नही
यह सिर्फ़ धोखा है निगाहों का और कुछ नही
कैसे मैं इस खेल में गिरिफ्तार हो गया
यूँ लगने लगा हमको उनसे प्यार हो गया ।

4 comments:

  1. यह सिर्फ़ मोहब्बतें अलफ़ाज़ है और कुछ नही
    यह सिर्फ़ धोखा है निगाहों का और कुछ नही
    कैसे मैं इस खेल में गिरिफ्तार हो गया
    यूँ लगने लगा हमको उनसे प्यार हो गया ।
    वाह बहुत सुंदर और भावपूर्ण ग़ज़ल लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! प्यार में अक्सर ऐसा ही होता है ! निगाहें सब कुछ बयान कर देती है पर वो हमेशा हकीकत नहीं बल्कि कभी कभी हम धोखा खा जाते हैं!

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  2. Word verification ka option hata deejiye comment mein aasani hogi

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  3. वाह वाह क्या बात है! सुभानाल्लाह! बहुत ही उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने!

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath