Tuesday, February 16, 2010

ग़ज़ल

नींद आँखों स चुराती जाती है
रात आती है तो बे जवाब ही कर जाती है ।

पत्ती पत्ती पर चमक उठते हैं आंसू मेरे
आपकी याद भी शबनम सी निखर जाती है ।

लौट आता हूँ थके हारे परिंदों की तरह
शफक शाम हर एक सम्त बिखर जाती है ।

शाम के वक़्त दरख्तों स न मिल कर रोना
सारे जंगल में हवाओं स खबर जाती है ।

2 comments:

  1. आपकी याद भी शबनम सी निखर जाती है ।
    Waaaaaaah!!

    Regards,
    Dimple

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath