नींद आँखों स चुराती जाती है
रात आती है तो बे जवाब ही कर जाती है ।
पत्ती पत्ती पर चमक उठते हैं आंसू मेरे
आपकी याद भी शबनम सी निखर जाती है ।
लौट आता हूँ थके हारे परिंदों की तरह
शफक शाम हर एक सम्त बिखर जाती है ।
शाम के वक़्त दरख्तों स न मिल कर रोना
सारे जंगल में हवाओं स खबर जाती है ।
आपकी याद भी शबनम सी निखर जाती है ।
ReplyDeleteWaaaaaaah!!
Regards,
Dimple
waah ye bhi bahut pasand aayi.
ReplyDelete