Wednesday, May 19, 2010

ग़ज़ल

वह मेरा मेहमान भी जाता रहा
दिल का सब अरमान भी जाता रहा

अब सुनाउगा किसे मै हाले दिल
हाय अब वह नादान भी जाता रहा

हुस्न तेरा बर्क के मानिंद है
उफ़ मेरा ईमान भी जाता रहा

वह बना ले गए हमे अपना अज़ीज़
अब तो इमकान भी जाता रहा

दिन गए अलीम जवानी के मेरे
आँख पहले अब कान भी जाता रहा










































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