Friday, May 8, 2009

तू किसी रास्ते का मुसाफिर रहे
तेरी एक एक ठोकर उठा लाऊंगा
अपनी बेचैन पलकों पे चुन चुन के मै
तेरे रास्ते के पत्थर उठा लाऊंगा
मै हर्फ़ प्यार का मोड़ सकता नही
ज़िन्दगी में तुझे छोड़ सकता नही
के आंसुओं का यह मौसम चला जाएगा
तेरे लैब पे यह तबस्सुम आजायेगा
तू अगर मेरे घर तक नही आएगा
मै तेरे घर तक ये घर तक उठा लाऊंगा
मुझको दिल की ज़मीन से आवाज़ दे
asmaan तेरे दर पे उठा लाऊंगा
यह ज़माना है बहरा फकत हम नशीं
chnd katre न उससे न मिल paayega
एक तू मुझे किसी रोज़ आवाज़ to दो
तेरी खातिर samandar उठा laungaa
तू किसी रास्ते का मुसाफिर रहे
तेरी एक एक ठोकर उठा laungaa .........
aleem azmi




5 comments:

  1. बहुत बढ़िया लगा!

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  2. वाह वाह क्या बात है! आपने हर एक ग़ज़ल बहुत खूब लिखा है!

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  3. वाह वाह क्या बात है! आपने हर एक ग़ज़ल बहुत खूब लिखा है!

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  4. " Tum kisi Raaste Ka Musafir Bano
    Maine tumahari raho me Phool Bicha dunga

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath