तू किसी रास्ते का मुसाफिर रहे
तेरी एक एक ठोकर उठा लाऊंगा
अपनी बेचैन पलकों पे चुन चुन के मै
तेरे रास्ते के पत्थर उठा लाऊंगा
मै हर्फ़ प्यार का मोड़ सकता नही
ज़िन्दगी में तुझे छोड़ सकता नही
के आंसुओं का यह मौसम चला जाएगा
तेरे लैब पे यह तबस्सुम आजायेगा
तू अगर मेरे घर तक नही आएगा
मै तेरे घर तक ये घर तक उठा लाऊंगा
मुझको दिल की ज़मीन से आवाज़ दे
asmaan तेरे दर पे उठा लाऊंगा
यह ज़माना है बहरा फकत हम नशीं
chnd katre न उससे न मिल paayega
एक तू मुझे किसी रोज़ आवाज़ to दो
तेरी खातिर samandar उठा laungaa
तू किसी रास्ते का मुसाफिर रहे
तेरी एक एक ठोकर उठा laungaa .........
aleem azmi
बहुत बढ़िया लगा!
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है! आपने हर एक ग़ज़ल बहुत खूब लिखा है!
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है! आपने हर एक ग़ज़ल बहुत खूब लिखा है!
ReplyDeletebahut sunder!!!!!
ReplyDelete" Tum kisi Raaste Ka Musafir Bano
ReplyDeleteMaine tumahari raho me Phool Bicha dunga