मत इंतज़ार कराओ हमे
कि वक़्त के फैसले पर अफ़सोस हो जाये
क्या पता कल तुम लौटकर आओ
और हम खामोश हो जाएँ
दूरियों से फर्क पड़ता नहीं
बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है
दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है
वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती है
दिल से खेलना हमे आता नहीं
इसलिये इश्क की बाजी हम हार गए
शायद मेरी जिन्दगी से बहुत प्यार था उन्हें
इसलिये मुझे जिंदा ही मार गए
मना लूँगा आपको रुठकर तो देखो,
जोड़ लूँगा आपको टूटकर तो देखो।
नादाँ हूँ पर इतना भी नहीं ,
थाम लूँगा आपको छूट कर तो देखो।
लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,
कोई करता है तो इल्जाम देते है।
कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,
और पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।
भीगी आँखों से मुस्कराने में मज़ा और है,
हसते हँसते पलके भीगने में मज़ा और है,
बात कहके तो कोई भी समझलेता है,
पर खामोशी कोई समझे तो मज़ा और है...!
मुस्कराना ही ख़ुशी नहीं होती,
उम्र बिताना ही ज़िन्दगी नहीं होती,
दोस्त को रोज याद करना पड़ता है,
बहुत बहुत शुक्रिया आपकी सुंदर टिपण्णी के लिए!
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत बढ़िया लगा! शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई!
सुन्दर भावों की अभिव्यंजना .....!!
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखा है आपने! मुझे बेहद पसंद आया!
aleem ji bahut khubsoorat rachna haa jitni tarif ki jaye kum haa
ReplyDeleteor in paktiyo ka to kya kehna
शायद मेरी जिन्दगी से बहुत प्यार था उन्हें
इसलिये मुझे जिंदा ही मार गए
aap bahut aacha likhta haa apki sabhi rachnyaye muje pasand haa
shuruvaat aur ant mazboot hai..beech mein utni shashakt nahi lagti..
ReplyDeletewww.pyasasajal.blogspot.com
कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,
ReplyDeleteऔर पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।
बात कहके तो कोई भी समझलेता है,
पर खामोशी कोई समझे तो मज़ा और है...!
उपरोक्त शेर दिल को छू गए
सुन्दर पेशकश पर बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त