Friday, May 8, 2009

ग़ज़ल

तूफ़ान मेरे सर से गुज़र क्यों नही जाता क्यों नही जाता ...
दरिया मेरी कश्ती में उतर क्यों नही जाता क्यों नही जाता
सदियों से भी सियाह रात के दलदल में फसा हूँ
सूरज मेरे अन्दर का उभर क्यों नही जाता.......
तूफ़ान मेरे सर से ..................
दरिया मेरी कश्ती में ...................
ताबीर-ऐ-खंज़र से है ज़ख्मी मेरी ऑंखें .......
मै खवाब के मानिंद बिखर क्यों नही जाता क्यों नही जाता
तूफ़ान मेरे सर से..........................
दरिया मेरी कश्ती में .....................
धुप मिली छाओं मिली धुप से साया
फिर रेत में सेहरा शजर को मिलने क्यों नही जाता क्यों नही जाता
तूफ़ान मेरे सर से................
दरिया मेरी कश्ती में ............

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