Monday, May 11, 2009

ग़ज़ल

अगर जो मै कह दू मोहब्बत है तुमसे
तो खुदारा मुझे ग़लत मत समझना
मेरी ज़रूरत हो तुम
वोह पाकीजा मूरत हो तुम
है चेहरा तुमहरा की दिन है सुनेहरा
और उस पर काली घटाओं का पहरा
गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है
यह लब है तुम्हरे के खिलता चमन है
बिखेरो जो जुल्फे तो शर्माए बादल
ये अलीम भी देखे तो हो जाए पागल
वोह पकीजः मूरत तुम
मेरी ज़रूरत हो तुम...
अगर मै जो कह दू .............
तो खुदारा मुझे तुम ...............

2 comments:

  1. दिल को जज्बात को सलीके से कहने में आपका जवाब नहीं।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  2. अगर जो मै कह दू मोहब्बत है तुमसे
    तो खुदारा मुझे ग़लत मत समझना
    मेरी ज़रूरत हो तुम

    बहुत खूब....अच्छी शुरुआत है .....!!

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath