Friday, May 8, 2009

ग़ज़ल

मिलना था इत्तेफाक बिचदना नसीब था
वो इतना दूर हो गया जितना करीब था
बस्ती के सारे लोग आतिश परस्त थे
घर जल रहा था मेरा समंदर करीब था
दफना दिया गया मुझे चांदी के कब्र में
जिस लड़की से प्यार करता था वो लड़की गरीब थी
मरयम कहा तलाश करू तेरे खून को
जो हाल कर गया मेरा वोह बहुत खुशनसीब था

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