Thursday, July 9, 2009

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मुदात्तों पढता रहा मैं तेरे चेहरे की किताब
याद तेरा हुस्न भी मुझको ज़बानी हो गया ।

प्यार है उनसे हमे अब ये बता देते हैं
देखते हैं की सज़ा उसकी वो क्या देते हैं
उनको शायद नही मालूम की सूरज हु मैं
एक दिया मुझको समझ कर वो हवा देते हैं।

3 comments:

  1. उनको शायद नही मालूम की सूरज हु मैं
    एक दिया मुझको समझ कर वो हवा देते हैं।
    bahut achcha

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  2. याद तेरा हुस्न भी मुझको ज़बानी हो गया ।

    वाह ..वाह...हम तो इस एक पंक्ति पर मर मिटे ......!!

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  3. वाह वाह क्या बात है! हर एक पंक्ति लाजवाब है! आपके नए पोस्ट का इंतज़ार है!

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath