Saturday, October 31, 2009

ग़ज़ल

किया है प्यार हमने ज़िन्दगी की तरह
वोह आशना भी मिला हम से अजनबी की तरह ।
सितम तो यह है वो भी न बन सका अपना
कुबूल हमने किए जिसके गम खुशी की तरह।
बढ़ा के प्यास मेरी उसने हाथ छोड़ दिया
वोह कर रहा था मुरव्वत दिल्लगी की तरह।
कभी न सोचा था हमने "अलीम" उसके लिए
करेगी वोह सितम हम पे हर किसी की तरह।

2 comments:

  1. ye apki best rachna haa abhi tak ki
    सितम तो यह है वो भी न बन सका अपना
    कुबूल हमने किए जिसके गम खुशी की तरह।

    ye lines bahut sunder haa........overall bahut badiya rachna haa......

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  2. aleem ji
    mere blog par aane ke liye thanks.aapki ye rachna achchhi lagi

    suman'meet'
    nai kavita post ki hai padiyega jaroor

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath