Wednesday, November 25, 2009

जब उसको मोहब्बत में खुदा मान लिया है
वोह क़त्ल भी कर दे शिकायत न करुगा।
मैं दूर बहुत दूर चला चला जाऊ तुझसे
लेकिन तेरे दिल से कभी हिजरत न करुगा।
हो जाऊ किसी ग़ैर का मुमकिन ही नही है
मैं तेरी अमानत में खयानत न करुगा।
तकदीर का आंचल मेरे सर से न गिरेगा
बदनाम बुजुर्गों की शराफत न करुगा।
सर तन से जुदा होना तो मंज़ूर है अलीम
मगर किसी बातिल की बे इज्ज़त न करुगा।

4 comments:

  1. आपकी लाइफ का फंड बहुत सुंदर है और वैसी ही सुंदर है आपकी गजल।
    बधाई।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    ReplyDelete
  2. जब उसको मोहब्बत में खुदा मान लिया है
    वोह क़त्ल भी कर दे शिकायत न करुगा।
    बहुत ही ख़ूबसूरत और दिल की गहराई से लिखी हुई आपकी ये प्यार भरा रचना सराहनीय है!

    ReplyDelete
  3. सर तन से जुदा होना तो मंज़ूर है अलीम
    मगर किसी बातिल की बे इज्ज़त न करुगा।

    बहुत खूब .....करनी भी नहीं चाहिए ......!!

    ReplyDelete
  4. हो जाऊ किसी ग़ैर का मुमकिन ही नही है
    मैं तेरी अमानत में खयानत न करुगा।
    क्या बात है! उम्दा रचना के लिए बधाई!

    ReplyDelete

ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath