Saturday, December 5, 2009

ग़ज़ल

तुमसे मिलने का यह बहाना अच्छा लगा
नज़र मिलकर नज़र चुराना अच्छा लगा।

चुपके चुपके जब वोह मुझसे मिलने आई
पायल का वोह शोर मचाना अच्छा लगा।

जहाँ जहा गुजरा मेरा हरजाई
उन गलियों में आना जाना अच्छा लगा।

गजलों का यह गाँव न छोड़ेगा "अलीम"
मेरो ग़ालिब का यह घराना अच्छा लगा।

3 comments:

  1. चुपके चुपके जब वोह मुझसे मिलने आई
    पायल का वोह शोर मचाना अच्छा लगा।
    वाह वाह क्या बात है! अत्यन्त सुंदर पंक्तियाँ! मन मोह लिया!

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  2. aap bahut accha lekhtein hai.
    Apaka andaaz bada accha hai.

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath