अल्फाज़ के झूठे बंधन मैं
राज़ के गहरे पर्दों में
हर शख्स मोहब्बत करता है
हालां के मोहब्बत कुछ भी नहीं
सब झूठे रिश्ते नाते हैं
सब दिल रखने की बातें हैं
सब असली रूप छुपाते हैं
एहसास खाली लोग यहाँ
लफ़्ज़ों के तीर चलाते है
इक बार नज़र में आ कर वो
फिर सारी उम्र रुलाते हैं
ये इश्क मोहबत मैहर -ओ -वफाये
सब कहने की बातें हैं
हर शःक्स खुदी की मस्ती में
बस अपनी खातिर जीता है …
alim ji shukriya mere blog per aaye jis se mujhe aap tak pahuchne ka zariya mila.aap bahut acchha likha hai aapne...aur kuch had tak yahi sacchayi b hai.
ReplyDeleteAleem Ji..Bohot khubsurat likha ha aapne.. aur mujhe sabse khas toh ye laga ki aapne tasavvur ki baaate n likhkar vo likha ha jo aksar hota ha... kehne ka andaz accha ha..
ReplyDeletebahut achchi hai ... aur badha bhi sakte hain.
ReplyDeleteKhoobsoorat rachana. Aur kitni sach!
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ReplyDeleteजनाब अलीम आज़मी साहब, आदाब
ReplyDeleteकलाम के ज़रिये.....
इतनी नाराज़गी का इज़हार???
'सब झूठे रिश्ते नाते हैं
सब दिल रखने की बातें हैं
सब असली रूप छुपाते हैं'
???सब???
किसी को तो बख्श देते भाई!
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!