Tuesday, January 5, 2010

अल्फाज़ के झूठे बंधन मैं
राज़ के गहरे पर्दों में
हर शख्स मोहब्बत करता है
हालां के मोहब्बत कुछ भी नहीं

सब झूठे रिश्ते नाते हैं
सब दिल रखने की बातें हैं
सब असली रूप छुपाते हैं
एहसास खाली लोग यहाँ
लफ़्ज़ों के तीर चलाते है
इक बार नज़र में आ कर वो
फिर सारी उम्र रुलाते हैं
ये इश्क मोहबत मैहर -ओ -वफाये
सब कहने की बातें हैं
हर शःक्स खुदी की मस्ती में

बस अपनी खातिर जीता है …

6 comments:

  1. alim ji shukriya mere blog per aaye jis se mujhe aap tak pahuchne ka zariya mila.aap bahut acchha likha hai aapne...aur kuch had tak yahi sacchayi b hai.

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  2. Aleem Ji..Bohot khubsurat likha ha aapne.. aur mujhe sabse khas toh ye laga ki aapne tasavvur ki baaate n likhkar vo likha ha jo aksar hota ha... kehne ka andaz accha ha..

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  3. bahut achchi hai ... aur badha bhi sakte hain.
    Khoobsoorat rachana. Aur kitni sach!

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  4. Please remove word verification from comments.

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  5. जनाब अलीम आज़मी साहब, आदाब
    कलाम के ज़रिये.....
    इतनी नाराज़गी का इज़हार???
    'सब झूठे रिश्ते नाते हैं
    सब दिल रखने की बातें हैं
    सब असली रूप छुपाते हैं'
    ???सब???
    किसी को तो बख्श देते भाई!
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  6. आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath