Saturday, February 27, 2010

हाले दिल


मैंने चिरागे इश्क जला कर बुझा दिया

दिल पर तुमाहरा नक्श बना कर मिटा दिया ।


जागा था तेरी याद में जो दिल किसी पहर

लोरी सुना सुना के फिर उसे सुला दिया ।


हो जाए और उसकी हथेली का रंग शोख

मेहँदी में मै ने खूने जिगर का मिला दिया ।


रखा है मैंने जब स कदम राहे इश्क में

हंसने का मुझको गम ने सलीका सिखा दिया ।


फरहाद , मजनू, राँझा, कभी श्याम

मुझको जुनूने इश्क ने क्या बना दिया ।


इस में तेरा कसूर नहीं कमसिनी का है

जिसने हमारे दिल को खिलौना बना दिया ।


दिले शिकन में आज बनाम ग़ज़ल ए दोस्त

"अलीम" ने दिल का हाल जहां को सुना दिया ।

Tuesday, February 16, 2010

दर्दे दिल


तेरे सिवा किसी की तमन्ना करू मैं

ऐसा कभी हुआ है जो ऐसा करू मैं ।


गो गम अज़ीज़ है तेरे फ़िराक का

फिर उसी इम्तिहान का शिकवा करू मै


आँखों को अश्क खू भी फराहम करू गा

दिल के लिए दर्द मुहैय्या करू मैं ।


यह रह गुज़र की जाए क्यामो करार है

यानी उस गली स भी गुजरा करू मैं ।


यानी कुछ इस तरह की तुझे भी खबर न हो

इस एहतियात स तुझे देखा करू मैं ।


हैरानो दिल शिकेश्ता हूँ इस हाले जार पर

कब जानता था अपना तमाशा करुगा मैं ।


हाथ खींच लूंगा वक़्त की ज़ंजीर पओसे

अब के बहार आती तो ऐसा करू मैं।

ग़ज़ल

नींद आँखों स चुराती जाती है
रात आती है तो बे जवाब ही कर जाती है ।

पत्ती पत्ती पर चमक उठते हैं आंसू मेरे
आपकी याद भी शबनम सी निखर जाती है ।

लौट आता हूँ थके हारे परिंदों की तरह
शफक शाम हर एक सम्त बिखर जाती है ।

शाम के वक़्त दरख्तों स न मिल कर रोना
सारे जंगल में हवाओं स खबर जाती है ।