सब्र और ज़ब्त की इन्तेहा हो गयी
सर ज़मीने वतन कर्बला हो गयी ।
दिल लगाने की हम स खता हो गयी
ज़िन्दगी किस कदर बे मज़ा हो गयी ।
जब स बचपन गया और शबाब अगया
साड़ी शोखी शरारत हवा हो गयी ।
सर ज़माने के आगे झुकाना पड़ा
जब नमाज़े मोहब्बत क़ज़ा हो गयी
आज फिर उनकी नज़रों की नज़रें मिली
फिर धनक रंगे दिल की फ़ज़ा हो गयी ।
सब्र और ज़ब्त की इन्तहा हो गयी
सर ज़मीने वतन कर्बला हो गयी
aleem ji bahut acchhi nazm paish ki...lekin ham jaise urdu k na-samjho ko urdu k shabdo k matlab nahi pata hote...so pls. kathin shabdo k meanings likh diya kare...such as KARBLA
ReplyDeleteवाह अलीम जी हम तो निशब्द हो गए आपके इस उम्दा ग़ज़ल को पढ़कर! इतना कहना चाहेंगे की आपकी लेखनी को सलाम! अद्भुत सुन्दर! इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई!
ReplyDeleteज़िन्दगी किस कदर बे मज़ा हो गयी ।
ReplyDeleteअलीम जी दिल लगाने से ज़िन्दगी बेमज़ा .....?????
साड़ी शोखी शरारत हवा हो गयी ...
साडी को सारी कर लें .....!!