Tuesday, March 9, 2010

गीत


चालक गयी उसकी गगरिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई


जाने कैसे बरखा आई
भीगा बिचौना भीगी रजाई


बैरी पवन ऐसे जोर स आई
की उड़ गयी छापरिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई ...


मेले वो गयी थी मारे ख़ुशी मा
गोटे वोह लगा के चुनरी मा


सरकश वाले शतर गली मा
हेरे गयी उसकी बिंदिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई


घर में उसके काँप उठे सब डरकर
रात मा सांप निकला जब छत पर


वोह दौड़ी जब डंडा लेकर
भुझाये गयी उसकी डिबिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई


घर से बजरिया मा वो चल दी
ले ली न गुड , मिर्चा और हल्दी


फिर जल्दी मा तसले के बल्दी
ले आई वो कटोरिया अब का होई
भिगोई के उसकी चुनरिया अब का होई .

2 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत और मनमोहक गीत लगा! आपके दूसरे पोस्ट से बिल्कुल हट के लगा और एक नए अंदाज़ में आपने बहुत खूब लिखा है! बधाई!

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  2. hausala afzaai ka shukriya ! waah.... HOli ka hud-dang raas aa gaya...Hindi ka ye roop bhi pasand aaye....der se hi sahi .....rango ka tyohaar aapke jeevan mein bhi rang bhar de

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath