Saturday, March 20, 2010

ज़ख्मे दिल


रोज़ एक ज़ख्म नया दिल पे लगाया तूने
मेरी हंसती हुई आँखों को रुलाया तूने


खो चुका था मै गमो दर्द के सन्नाटों में
मेरी बेताब तमन्ना को जगाया तूने


मेरी उल्फत को न समझी है न समझेगी कभी
जब भी फुर्सत मिली इस दिल को दुखाया तूने


गैर की बज़्म सजाने के लिए तूने सनम
मुझसे हर रोज़ बहाना ही बनाया तूने


तेरा एक एक सितम हंस के "अलीम" ने सहा
उसके लैब पर कभी शिकवा तो न पाया तूने

5 comments:

  1. खो चुका था मै गमो दर्द के सन्नाटों में
    मेरी बेताब तमन्ना को जगाया तूने

    bahut khoob.

    saath hi meri rachna ka shukriya....aapne apni pratikriya mein jo vyakt kiya usko jitna samjha reply kiya hai

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  2. खो चुका था मै गमो दर्द के सन्नाटों में
    मेरी बेताब तमन्ना को जगाया तूने
    मेरी उल्फत को न समझी है न समझेगी कभी
    जब भी फुर्सत मिली इस दिल को दुखाया तूने ..
    बहुत ही सुन्दर और भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है! दिल को छू गयी आपकी ये दर्दभरी रचना! बधाई!

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  3. aise bewafao se yu ba-wafa na ho..
    aise hi chot dega ye tu itna gam-zada na ho.

    sambhal apne dil ko ye adao ka bazar hai..
    pehchan inko ankho se ye be-gairat sansar hai..

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  4. aisakisne diltod diya jo dard se bhare baithe hain....
    khair bahut khoob

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  5. अलीम जी
    अच्छा लिखते हैं आप हर रचना सुन्दर है ......

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ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath