आँखों में बस के दिल में समां कर चले गए
ख्वाब्दीदा ज़िन्दगी थी जगा कर चले गए
चेहरे तक आस्तीन वह लाकर चले गए
क्या राज़ था की जिसको छुपाकर चले गए
रगरग में इस तरह समां कर चले गए
जैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए
आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
एक आग सी वह और लगाकर चले गए
लैब थर थरा के रह गए लेकिन वो ऐ "अलीम "
जाते हुए निगाह मिलाकर चले गए .
रगरग में इस तरह समां कर चले गए
ReplyDeleteजैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए
आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
एक आग सी वह और लगाकर चले गए
वाह वाह माशाल्लाह क्या खूब लिखा है आपने! हर एक शब्द में मोहब्बत भरा है! इस उम्दा रचना के लिए आपको ढेर सारी बधाइयाँ!
रगरग में इस तरह समां कर चले गए
ReplyDeleteजैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए
आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
एक आग सी वह और लगाकर चले गए
वाह ......लाजवाब ......!!
आपके हुनर का जादू बढ़ते जा रहा है ......!!
वाह बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो सराहनीय है ! बधाई!
ReplyDeletesukriya aleem! Last sher par daad dete hain ! jaate hue nigah mila kar chale gaye
ReplyDeleteरगरग में इस तरह समां कर चले गए
ReplyDeleteजैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए ..sundar...
wow nice
ReplyDeleteAapka blog visit karti hoon ... pichchli rachana padhi thi, aaj yah bhi padh li! Masroofiyat hai .. khud apna blog dus dinon mein ek baar dekhti hoon ... bataiye !
ReplyDeleteGod bless
RC
जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर....बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..
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