Tuesday, March 30, 2010

दीए चाहत के


आँखों में बस के दिल में समां कर चले गए
ख्वाब्दीदा ज़िन्दगी थी जगा कर चले गए


चेहरे तक आस्तीन वह लाकर चले गए
क्या राज़ था की जिसको छुपाकर चले गए


रगरग में इस तरह समां कर चले गए
जैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए


आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
एक आग सी वह और लगाकर चले गए


लैब थर थरा के रह गए लेकिन वो ऐ "अलीम "
जाते हुए निगाह मिलाकर चले गए .

8 comments:

  1. रगरग में इस तरह समां कर चले गए
    जैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए
    आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
    एक आग सी वह और लगाकर चले गए
    वाह वाह माशाल्लाह क्या खूब लिखा है आपने! हर एक शब्द में मोहब्बत भरा है! इस उम्दा रचना के लिए आपको ढेर सारी बधाइयाँ!

    ReplyDelete
  2. रगरग में इस तरह समां कर चले गए
    जैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए


    आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
    एक आग सी वह और लगाकर चले गए

    वाह ......लाजवाब ......!!
    आपके हुनर का जादू बढ़ते जा रहा है ......!!

    ReplyDelete
  3. वाह बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो सराहनीय है ! बधाई!

    ReplyDelete
  4. sukriya aleem! Last sher par daad dete hain ! jaate hue nigah mila kar chale gaye

    ReplyDelete
  5. रगरग में इस तरह समां कर चले गए
    जैसे मुझ ही को मुझसे चुरा के चले गए ..sundar...

    ReplyDelete
  6. Aapka blog visit karti hoon ... pichchli rachana padhi thi, aaj yah bhi padh li! Masroofiyat hai .. khud apna blog dus dinon mein ek baar dekhti hoon ... bataiye !

    God bless
    RC

    ReplyDelete
  7. जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर....बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..

    ReplyDelete

ap sabhi ka sawagat hai aapke viksit comments ke sath