मिलते हैं बिछड़ते हैं लुटते है सभी सपने
दुनिया में मोहब्बत की इतनी सी कहानी है!
हम भी यूही मर जाते, मिट जाते ,फना हो जाते
ज़िंदा हैं मोहब्बत में हैरत की निशानी है!
सपने तो दिखाती है ताबीर नहीं मिलती
कहते है मोहब्बत की ये रीत पुरानी है !
हर एक इंसान को अच्छे रिश्ते अच्छे संस्कार और मेल जोल की ज़रूरत पड़ती है ताकि उसकी दुनयावी लिहाज़ से उसकी सारी ज़रुरियात (आवश्यकता) क़ाबिल ए गौर हो और वो एक अच्छा बाशिंदा (नागरिक) बन कर अपने मुल्क के लिए कुछ कर सके यही एक देशभक्ति है सो इन्सान को चाहिए कि आपसी ताल्लुकात बनाके एक दुसरे को लेकर चले जिससे हर एक कि ज़रुरियात पूरी हो सके और इंशाअल्लाह मेरी यह कोशिश होगी आप और हम पर कोई भी परेशानी आये, हम इससे निबटकर अपने मुल्क की हिफाज़त कर सके - आमीन! (सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा)
Wednesday, March 9, 2011
Saturday, March 5, 2011
ग़ज़ल
तेरे रख दू गुलाब बराबर
कुछ तो हो हिसाब बराबर
मैं बरसो से ही चाहता हूँ
आप ही को जनाब बराबर
जब से तुमको देखा है
तब से हूँ बेताब बराबर
जैसे हो झोंका बादे सबा का
यूँ गुज़रता जाए शबाब बराबर
मुझको तेरे ख्यालों के
आ रहे हैं ख्वाब बराबर
जो लिखा तेरे ख्यालों में
वो हुई ग़ज़लें किताब बराबर
कहा पहुचा हूँ तुझ तक
अभी तक है हिसाब बराबर
अब किसे चाहोगे "अलीम"
कौन होगा महताब बराबर
Tuesday, March 1, 2011
ग़ज़ल
इश्क था जिससे उसी शख्श से नफरत कैसी
दिल मोहब्बत के लिए है तो अदावत कैसी
ज़िन्दगी तुझसे ज़ालिम की शिकायत कैसी
वक़्त हाकिम है तो हाकिम से बगावत कैसी
हम वफादारों को मरने भी नहीं देता है
उसके लहजे में है ज़हरीली शराफत कैसी
ऐसे अंदाज़े मोहब्बत पे मोहब्बत कुर्बान
दिल में आते हो तो आजाओ इज़ाज़त कैसी
खुद भी हैरान हूँ मैं अपनी अना के हाथों
गम उठाने की मुझे पद गयी आदत कैसी
ज़ख्म भी देते हो और हाल भी कब पूछते हो
अब ये हमदर्दी है तो होती है अदावत कैसी
जो भी बोया है वही काटेगा एक रोज़ "अलीम"
गम मिले है ज़माने से शिकायत कैसी !
ज़िन्दगी तुझसे ज़ालिम की शिकायत कैसी
वक़्त हाकिम है तो हाकिम से बगावत कैसी
हम वफादारों को मरने भी नहीं देता है
उसके लहजे में है ज़हरीली शराफत कैसी
ऐसे अंदाज़े मोहब्बत पे मोहब्बत कुर्बान
दिल में आते हो तो आजाओ इज़ाज़त कैसी
खुद भी हैरान हूँ मैं अपनी अना के हाथों
गम उठाने की मुझे पद गयी आदत कैसी
ज़ख्म भी देते हो और हाल भी कब पूछते हो
अब ये हमदर्दी है तो होती है अदावत कैसी
जो भी बोया है वही काटेगा एक रोज़ "अलीम"
गम मिले है ज़माने से शिकायत कैसी !
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