Wednesday, March 9, 2011

मिलते हैं बिछड़ते हैं लुटते है सभी सपने
दुनिया में मोहब्बत की इतनी सी कहानी है!

हम भी यूही मर जाते, मिट जाते ,फना हो जाते
ज़िंदा हैं मोहब्बत में हैरत की निशानी है!

सपने तो दिखाती है ताबीर नहीं मिलती
कहते है मोहब्बत की ये रीत पुरानी है !

Saturday, March 5, 2011

ग़ज़ल


तेरे रख दू गुलाब बराबर
कुछ तो हो हिसाब बराबर

मैं बरसो से ही चाहता हूँ
आप ही को जनाब बराबर


जब से तुमको देखा है
तब से हूँ बेताब बराबर

जैसे हो झोंका बादे सबा का
यूँ गुज़रता जाए शबाब बराबर


मुझको तेरे ख्यालों के
आ रहे हैं ख्वाब बराबर

जो लिखा तेरे ख्यालों में
वो हुई ग़ज़लें किताब बराबर


कहा पहुचा हूँ तुझ तक
अभी तक है हिसाब बराबर

अब किसे चाहोगे "अलीम"
कौन होगा महताब बराबर

Tuesday, March 1, 2011

ग़ज़ल







इश्क था जिससे उसी शख्श से नफरत कैसी
दिल मोहब्बत के लिए है तो अदावत कैसी

ज़िन्दगी तुझसे ज़ालिम की शिकायत कैसी
वक़्त हाकिम है तो हाकिम से बगावत कैसी

हम वफादारों को मरने भी नहीं देता है
उसके लहजे में है ज़हरीली शराफत कैसी

ऐसे अंदाज़े मोहब्बत पे मोहब्बत कुर्बान
दिल में आते हो तो आजाओ इज़ाज़त कैसी

खुद भी हैरान हूँ मैं अपनी अना के हाथों
गम उठाने की मुझे पद गयी आदत कैसी

ज़ख्म भी देते हो और हाल भी कब पूछते हो
अब ये हमदर्दी है तो होती है अदावत कैसी

जो भी बोया है वही काटेगा एक रोज़ "अलीम"
गम मिले है ज़माने से शिकायत कैसी !