तेरे रख दू गुलाब बराबर
कुछ तो हो हिसाब बराबर
मैं बरसो से ही चाहता हूँ
आप ही को जनाब बराबर
जब से तुमको देखा है
तब से हूँ बेताब बराबर
जैसे हो झोंका बादे सबा का
यूँ गुज़रता जाए शबाब बराबर
मुझको तेरे ख्यालों के
आ रहे हैं ख्वाब बराबर
जो लिखा तेरे ख्यालों में
वो हुई ग़ज़लें किताब बराबर
कहा पहुचा हूँ तुझ तक
अभी तक है हिसाब बराबर
अब किसे चाहोगे "अलीम"
कौन होगा महताब बराबर
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