आप और हम
हर एक इंसान को अच्छे रिश्ते अच्छे संस्कार और मेल जोल की ज़रूरत पड़ती है ताकि उसकी दुनयावी लिहाज़ से उसकी सारी ज़रुरियात (आवश्यकता) क़ाबिल ए गौर हो और वो एक अच्छा बाशिंदा (नागरिक) बन कर अपने मुल्क के लिए कुछ कर सके यही एक देशभक्ति है सो इन्सान को चाहिए कि आपसी ताल्लुकात बनाके एक दुसरे को लेकर चले जिससे हर एक कि ज़रुरियात पूरी हो सके और इंशाअल्लाह मेरी यह कोशिश होगी आप और हम पर कोई भी परेशानी आये, हम इससे निबटकर अपने मुल्क की हिफाज़त कर सके - आमीन! (सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा)
Wednesday, March 9, 2011
Saturday, March 5, 2011
ग़ज़ल
Tuesday, March 1, 2011
ग़ज़ल
ज़िन्दगी तुझसे ज़ालिम की शिकायत कैसी
वक़्त हाकिम है तो हाकिम से बगावत कैसी
हम वफादारों को मरने भी नहीं देता है
उसके लहजे में है ज़हरीली शराफत कैसी
ऐसे अंदाज़े मोहब्बत पे मोहब्बत कुर्बान
दिल में आते हो तो आजाओ इज़ाज़त कैसी
खुद भी हैरान हूँ मैं अपनी अना के हाथों
गम उठाने की मुझे पद गयी आदत कैसी
ज़ख्म भी देते हो और हाल भी कब पूछते हो
अब ये हमदर्दी है तो होती है अदावत कैसी
जो भी बोया है वही काटेगा एक रोज़ "अलीम"
गम मिले है ज़माने से शिकायत कैसी !
Tuesday, June 8, 2010
याद तेरी आये तो ग़ज़ल कहता हूँ
रात दिन मुझको सताए तो ग़ज़ल कहता हूँ
होंठ स अपने पिलाए तो ग़ज़ल कहता हूँ
आँखों स आँख मिलाये तो ग़ज़ल कहता हूँ
चांदनी रात में तनहा मै कभी होता हूँ
याद में नींद न आये तो ग़ज़ल कहता हूँ
जब कोई होंठ पर मुस्कान सजा कर अपने
शर्म स आँख झुखाये तो ग़ज़ल कहता हूँ
पढ़ के अशार को "अलीम" के अगर कोई भी
मेरी हिम्मत को बढाए तो ग़ज़ल कहता हूँ
Wednesday, June 2, 2010
ग़ज़ल
लगता नहीं हमारा दिल अब किताब में
पी कर तुम्हरी आँख से महसूस यह किया
मस्ती न कुछ दिखी है खालिस शराब में
क्या तुमको मुझसे प्यार है पुछा था एक सवाल
मुस्कान लब पे रख दिया उसने जवाब में
शायद वो हमसे प्यार अब करने लगा जनाब
वो आप आप कहता है हमको खिताब में
मै क्यों न अपनी जान को तुम पर करू निसार
कयामत छुपी आपके "अलीम" शबाब में
Friday, May 21, 2010
हर एक अदा
मुद्दतों आँख जिस पे तरसी है
कल तलक जो मेरा मसीहा था
आज उसकी ज़बा ज़हर सी है
मर मिटा आपकी अदाओं पर
हर अदा आपकी कहर सी है
रूठ जाना ज़रा सी बातों पर
यह अदा भी तेरी हुनर सी है
खो न जाऊ तुम्हारी आँखों में
आँख "अलीम" तेरी नगर सी है
Wednesday, May 19, 2010
ग़ज़ल
दिल का सब अरमान भी जाता रहा
अब सुनाउगा किसे मै हाले दिल
हाय अब वह नादान भी जाता रहा
हुस्न तेरा बर्क के मानिंद है
उफ़ मेरा ईमान भी जाता रहा
वह बना ले गए हमे अपना अज़ीज़
अब तो इमकान भी जाता रहा
दिन गए अलीम जवानी के मेरे
आँख पहले अब कान भी जाता रहा