Sunday, May 24, 2009

बे वफ़ा (ग़ज़ल)

कभी तो तुमको याद आएगी वो बहारें वो समा
झुके झुके बादलों के निचे मिले थे हम तुम जहा जहा
कभी तो तुम को याद आएगी ........................
तुम से बिछडे सदियाँ बीती , फिर भी हमे याद आते हो
खुशबू बन कर आहट बनकर , आज भी तुम तड़पाते हो
ज़िन्दगी कितनी बेजार है , तुमने कभी तो मुझसे कहा था तुम से प्यार है
कहां गई वो प्यार की कसमे, प्यार का वादा क्या हुआ
बेवफा वो बेवफा .....................................................
कभी तो तुमको याद आएगी..................................
जितना तुमको अपना समझा, उतना ही हम बेगाने थे
हमने क्या-क्या आस लगाई हम कितने दीवाने थे
ज़िन्दगी कितनी बे जार है तुमने कभी तो मुझसे कहा था तुमसे प्यार है
कहा गई वो प्यार की कसमे प्यार का वादा क्या हुआ
बे वफ़ा वो बेवफा ...................................................
कभी तो तुमको याद आएगी................................

ग़ज़ल

ख्वाब में जो कुछ देख रहा हूँ उसका दिखाना मुश्किल है
आईने में फूल खिला है हाथ लगाना मुश्किल है
उसके कदम से फूल खिले है मैंने सुना है चार तरफ
वैसे इस वीरान सेहरा में फूल खिलाना मुश्किल है
तन्हाई में दिल का सहारा एक हवा का झोंका था
वोह भी गया है सुए बयाबा उसका आना मुश्किल है
शीशा गरों के घरों में सूना है एक परी कल आई थी
वैसे ख्याल ओ ख्वाब है परियां उनका आना मुश्किल है
खवाब में जो कुछ देख रहा हूँ उसका दिखाना मुश्किल है
आईने में फूल खिला है हाथ लगाना मुश्किल है

Saturday, May 23, 2009

ग़ज़ल

आँखों में अगर आज वो महताब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता
कमरे में अगर खिड़की से कुछ फूल न गिरते
दिल तेरे लिए इस तरह बेताब न होता
बस्ती में कभी इश्क की आवाज़ न आती
दरिया अगर नगमा सैलाब न होता
आंखों में अगर आज वो महताब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता

ग़ज़ल

अपने सब चेहरे छुपा रखे है आईने में
मैं ने कुछ फूल खिला रखे है आईने में
तुम भी दुनिया को सुनाते हो कहानी झूटी
मैं ने भी परदे गिरा रखे है आईने में
फिर निकल आएगी सूरज की सुनहरी ज़ंजीर
ऐसे मौसम भी उठा रखे है आईने में
मैं ने कुछ लोगों की तस्वीर उतारी है "अलीम"
और कुछ लोग छुपा रखे है आईने में

ग़ज़ल

आज सितारे आँगन में है उनको रुखसत मत करना
शाम से मैं भी उलझन में हू तुम नही गफलत मत करना
हर आँगन में दिए जलाना, हर आँगन में फूल खिलाना
उस बस्ती में सब कुछ करना हम से मोहब्बत मत करना
अजनबी मुल्कों अजनबी अजनबी लोगों में आकर मालूम हुआ
देखना सारे ज़ुल्म वतन में लेकिन हिजरत मत करना
उसकी याद में दिन भर रहना आंसू रो के चुप साधे
फिर भी सबसे बातें करना उसकी शिकायत मत करना

ग़ज़ल

Friday, May 22, 2009

ज़िन्दगी से बहुत दूर हु मै

ज़िंदा हु क्योकि मजबूर हु मै

मोहब्बत करने की खता हो गई मुझसे

वरना तो शायद बेक़सूर हु मै

उसकी याद आती है वो क्यों नही आती

अपने गम अपने तनहाई में चूर हु मैं

हालात के सितम में ये वरना आज भी

उसी की आँखों का सुरूर हु मै

न की इश्क में कमी कभी लेकिन

वोह कहती है अगर तो बेवफा ज़रूर हु मैं

ग़ज़ल


उनकी उल्फत में उतर जाने के बाद
किस तरह इकठ्ठा करू ख़ुद को बिखर जाने के बाद
जीते जी करता रहू गा फ़र्ज़ उल्फत का अदा
कम से कम याद आऊंगा मैं उनको मर जाने के बाद
मुझसे मिलने की ज़रूरत भी नही उनको रही
बे मुरव्वत हो गए किस्मत संवर जाने के बाद
उसको भले न हो मेरी चाहत का एहसास आज
याद बहुत आउंगा उसे एक दिन चले जाने के बाद

Wednesday, May 20, 2009

वक्त हालात और मैं

वक्त कुछ इस तरह मेहरबान गया
आंधियां आती गई मैं आशियाँ होता गया
सीखा न था जब चेह्चाहाता था बहुत
ढल गया अल्फाज़ में तो बेजुबान होता गया
ढूंढ लेता था अंधेरों में भी अपने आपको
पर उजालो से मिला तो बदगुमान होता गया
जब किया था कैद उसे था बहुत बाकी मगर
रफ्ता रफ्ता वोह परिंदा हम जुबां होता गया
आँधियों के साथ ऊंचा कुछ दिनों वो क्या उड़ा
गर्द का राह था लेकिन आसमान तो होता गया

ग़ज़ल

सामने बैठे रहो दिल को करार आएगा
जितना देखेंगे तुम्हे उतना ही प्यार आएगा
मैं जो सोचूंगा तुम्हे और तुम संवर जाओगे
फूल से चेहरे पर कुछ और निखार आएगा
मेरी धड़कन में बसों तुम मेरी साँसों में रहो
बस येही लम्हा हर एक क़र्ज़ उतर आयेगा
सामने बैठो रहो दिल को करार आएगा
जितना देखेंगे उतना ही प्यार आयेगा

ज़माना बीत गया ...


किस किस को बताएं हम खामोशी का सबब
मुझको चुप रहते तो ज़माना बीत गया
आंसू आँखों से भले न गिरे
दिल को रोते तो ज़माना बीत गया
वो खुश हो गए अगर तो मैं हंस लेता हूँ
मुझको तो ख़ुद हँसे ज़माना बीत गया
हर लम्हा तसव्वुर में उन्हें ही पाता हूँ
उनसे हकीक़त में मिले तो ज़माना बीत गया
जिस मंजिल की तलाश थी वो सफर में ही खो गई
और मुझको सफर करते-करते ज़माना बीत गया
मेरी तन्हाईयों में आज भी है वो बराबर के शरीक
उनकी महफ़िल में तो गए ज़माना बीत गया
अकेला मैं ही नही रोया खोकर उन्हें "उबैद"
उनको भी रोते रोते ज़माना बीत गया
"अब्दुल्लाह "

Saturday, May 16, 2009

ग़ज़ल

उदास क्यों हो उदास क्यों हो

तुम इस कदर बाद हवास क्यों हो

उदास होने से फ़ायदा क्या

बताओ रोने से फ़ायदा क्या

जो हो चुका उसपे ख़ाक डालो

नए रास्ते तुम निकालो

उड़ान टूटे परों में भर लो

हवा के लश्कर को तुम फतह कर लो

उदास क्यों हो उदास क्यों हो

तुम इस कदर बदहवास क्यों हो .

ग़ज़ल

Wednesday, May 13, 2009

ग़ज़ल

ए मेरी जाने ग़ज़ल ......
ए मेरी जाने ग़ज़ल.......
कोई मिलता नहीं ही तेरी तरह तेरा बदल
ए मेरी जाने ग़ज़ल.....
ए मेरी जाने ग़ज़ल....
तेरी आंखें है या कोई जादू.....
तेरी बातें है या कोई खुशबू....
जब भी सोचता हूँ तुझको दिल जाता है मचल
ए मेरी जाने ग़ज़ल.......
तेरी यादों में रोज़ रोता हूँ
सुबह होती है तो मैं सोता हूँ
तुझको पाने में खुद को खोता हूँ
तू मुझे अपना बना ले या मेरे दिल से निकल
ए मेरी जाने ग़ज़ल........
हर सू बजती है शहनाई
खुशबू बनती है पुरवाई
जब तू लेती है अंगडाई
यूँ खिले तेरा बदन जैसे कोई ताजा
कँवल ए मेरी जाने ग़ज़ल.........
पागल कर देगी तेरी तन्हाई
कैसे सहूँ मैं तेरी
जुदाई अब तो आजा ए हरजाई
बिन तेरे मेरा गुज़रता नहीं मेरा एक पल
ए मेरी जाने जाने ग़ज़ल........
मैं तेरा दिल हूँ तू धड़कन है
मैं चेहरा हूँ तू दर्पण है
मैं प्यासा हूँ तू सावन है
मैं तेरा शाहजहाँ
तू मेरी मुमताज़ महल
ए मेरी जाने ग़ज़ल.......
ए मेरी जाने ग़ज़ल.............

ग़ज़ल

बहुत खूब्सिरत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
कभी जो मै कह दू मोहब्बत है तुमसे
तो मुझको खुदारा ग़लत मत समझना
की मेरी ज़रूरत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
है फूलों की डाली यह बाहें यह बाहें तुम्हारी
है खामोश जादू निगाहें तुम्हारी
जो काटें हो सब अपने दामन में रख लू
सजाऊ मै कलियों से राहें तुम्हारी
नज़र से ज़माने की ख़ुद को बचाना
किसी और से देखो दिल न लगाना
की मेरी अमानत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
है चेहरा तुम्हारा की दिन है सुनेहरा
और उसपर यह काली घटाओं का पहरा
गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है
यह लैब है तुम्हारे की खिलता चमन है
बिखेरो जो जुल्फे तो शर्माए बादल
यह "अलीम" तो हो जाए पागल
वोह पाकीजा मूरत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
जो बन के मुस्कुराती है अक्सर
शबे हिज्र में जो रुलाती है अक्सर
जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे
जो शायर को दे जाए पहलु ग़ज़ल की
छुपाना जो चाहे छुपाई न जाए
भुलाना जो चाहे भुलाई न जाए
वोह पहली मोहब्बत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
बहुत खूसूरत हो तम

अलीम आज़मी

गीत (माँ)


अम्बर की यह ऊंचाई धरती की यह गहराई
तेरे मन में है समाई , माई वो माई
तेरा मन अमृत का का प्याला येही "काबा" येही "शिवाला"
तेरी ममता पवन दाई, माई वो माई
जी चाहे जो तेरे साथ रहू मै बन के तेरा हमजोली
तेरे हाथ आऊ छुप जाऊ यह खेलु आँख मिचोली
पर्यियों की कहानी सुना के कोई मीठी लोरी
कर दे सुना के सुख दाई , माई वो माई
जाड़ो की ठंडी रातों में घर लौट के जब मै आऊ
हलकी सी दस्तक पर अपनी तुझे जागता मै पाउ
सर्दी से जो मै तिठुरता जाऊ
तो मै रजाई अपने ऊपर पौ
लेकिन ठंडा सतर अपनाई, माई वो माई
अम्बर की यह .......धरती की ..............
तेरे मन में है समाई ...........माई वो माई .



ग़ज़ल

जो शजर बे लिबास रहते है
उनके साए उदास रहते है
चंद लम्हात की खुशी के लिए
लोग बरसो उदास रहते है
इत्तेफाक़न जो हंस लिए थे कभी
इन्तेकमन उदास रहते है
वोह भी पहचानते नही मुझको
जो मेरे आस पास रहते है
उनके बारे में सोचिये
जो मुसलसल उदास रहते है
जो शजर उदास रहते है
उनके साए उदास रहते है

Monday, May 11, 2009

ग़ज़ल

अगर जो मै कह दू मोहब्बत है तुमसे
तो खुदारा मुझे ग़लत मत समझना
मेरी ज़रूरत हो तुम
वोह पाकीजा मूरत हो तुम
है चेहरा तुमहरा की दिन है सुनेहरा
और उस पर काली घटाओं का पहरा
गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है
यह लब है तुम्हरे के खिलता चमन है
बिखेरो जो जुल्फे तो शर्माए बादल
ये अलीम भी देखे तो हो जाए पागल
वोह पकीजः मूरत तुम
मेरी ज़रूरत हो तुम...
अगर मै जो कह दू .............
तो खुदारा मुझे तुम ...............

Saturday, May 9, 2009

ग़ज़ल


मत इंतज़ार कराओ हमे
कि वक़्त के फैसले पर अफ़सोस हो जाये
क्या पता कल तुम लौटकर आओ
और हम खामोश हो जाएँ
दूरियों से फर्क पड़ता नहीं
बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है
दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है
वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती है
दिल से खेलना हमे आता नहीं
इसलिये इश्क की बाजी हम हार गए
शायद मेरी जिन्दगी से बहुत प्यार था उन्हें
इसलिये मुझे जिंदा ही मार गए
मना लूँगा आपको रुठकर तो देखो,
जोड़ लूँगा आपको टूटकर तो देखो।
नादाँ हूँ पर इतना भी नहीं ,
थाम लूँगा आपको छूट कर तो देखो।
लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,
कोई करता है तो इल्जाम देते है।
कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,
और पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।
भीगी आँखों से मुस्कराने में मज़ा और है,
हसते हँसते पलके भीगने में मज़ा और है,
बात कहके तो कोई भी समझलेता है,
पर खामोशी कोई समझे तो मज़ा और है...!
मुस्कराना ही ख़ुशी नहीं होती,
उम्र बिताना ही ज़िन्दगी नहीं होती,
दोस्त को रोज याद करना पड़ता है,

Friday, May 8, 2009

तू किसी रास्ते का मुसाफिर रहे
तेरी एक एक ठोकर उठा लाऊंगा
अपनी बेचैन पलकों पे चुन चुन के मै
तेरे रास्ते के पत्थर उठा लाऊंगा
मै हर्फ़ प्यार का मोड़ सकता नही
ज़िन्दगी में तुझे छोड़ सकता नही
के आंसुओं का यह मौसम चला जाएगा
तेरे लैब पे यह तबस्सुम आजायेगा
तू अगर मेरे घर तक नही आएगा
मै तेरे घर तक ये घर तक उठा लाऊंगा
मुझको दिल की ज़मीन से आवाज़ दे
asmaan तेरे दर पे उठा लाऊंगा
यह ज़माना है बहरा फकत हम नशीं
chnd katre न उससे न मिल paayega
एक तू मुझे किसी रोज़ आवाज़ to दो
तेरी खातिर samandar उठा laungaa
तू किसी रास्ते का मुसाफिर रहे
तेरी एक एक ठोकर उठा laungaa .........
aleem azmi




ग़ज़ल

तूफ़ान मेरे सर से गुज़र क्यों नही जाता क्यों नही जाता ...
दरिया मेरी कश्ती में उतर क्यों नही जाता क्यों नही जाता
सदियों से भी सियाह रात के दलदल में फसा हूँ
सूरज मेरे अन्दर का उभर क्यों नही जाता.......
तूफ़ान मेरे सर से ..................
दरिया मेरी कश्ती में ...................
ताबीर-ऐ-खंज़र से है ज़ख्मी मेरी ऑंखें .......
मै खवाब के मानिंद बिखर क्यों नही जाता क्यों नही जाता
तूफ़ान मेरे सर से..........................
दरिया मेरी कश्ती में .....................
धुप मिली छाओं मिली धुप से साया
फिर रेत में सेहरा शजर को मिलने क्यों नही जाता क्यों नही जाता
तूफ़ान मेरे सर से................
दरिया मेरी कश्ती में ............

ग़ज़ल

मिलना था इत्तेफाक बिचदना नसीब था
वो इतना दूर हो गया जितना करीब था
बस्ती के सारे लोग आतिश परस्त थे
घर जल रहा था मेरा समंदर करीब था
दफना दिया गया मुझे चांदी के कब्र में
जिस लड़की से प्यार करता था वो लड़की गरीब थी
मरयम कहा तलाश करू तेरे खून को
जो हाल कर गया मेरा वोह बहुत खुशनसीब था

ग़ज़ल

तनहाई में जब जब तेरी यादों से मिला हूँ
महसूस हुआ की आपको देख रहा हूँ
ऐसा भी नही है तुझे याद करू मैं
ऐसा भी नही की तुझे भूल गया हूँ
शायद यह तकब्बुर की सज़ा मुझको मिली है
उभरा था बड़े शान से अब डूब रहा हूँ
ए रात मेरी संत ज़रा सोच के बढ़ना
मालूम नही है तुझे मै अलीम जिया हूँ

Thursday, May 7, 2009

ग़ज़ल

गरीबो की दुनिया में ख़्वाबों की आहट
लो आने लगी इन्कलाबों की आहट
हुआ खुश्क आँखों का पानी भी अब तो
समंदर में आई शराबों की आहट
मुझे मेरे बिस्तर पर कांटे मिले है
सुनाई सी दी है गुलाबों की आहट
लिखा उसने कुछ भी नही मुझको ख़त में
मगर आरही है जवाबों की आहट
उजालों को अब रास आने लगी है
रूखों से सरकते नकाबों की आहट
वही लोग दुनिया में पिछडे हुए है
नही सुन सके जो किताबों की आहट
सभी आशियानों में सोये है "अलीम"
करीब आरही है उकाबों की आहट

Tuesday, May 5, 2009

ग़ज़ल

जो समझते ही नही वक्त की कीमत क्या है
उनको एहसास दिलाने की ज़रूरत क्या है
तुम ही बतलाओ सरे राह ये चलते चलते
नाजो अंदाज़ दिखाने की यह आदत क्या है
बेचकर अपनी अना पूछ रहे हो हमसे
शर्म क्या है यह हया क्या है नदामत क्या है
भाई भाई का यहा हो गया दुश्मन कैसे
कोई बतलाये तो आख़िर यह सियासत क्या है
बाखुदा कोई नही पूछने वाला दिल से

ग़ज़ल


क्या समा था बहार से पहले
गम कहा था बहार से पहले
अब तमाशा है चार तिनकों का
आशियाँ था बहार से पहले
ए मेरे दिल के दाग तू ही बता
तू कहा था बहार से पहले
पिछली शब् में खिजां का सन्नाटा
हम ज़बान था बहार से पहले
चांदनी में यह आग का दरिया
कब रवां था बहार से पहले
लुट गई दिल की ज़िन्दगी "अलीम"
दिल जवान था बहार से पहले
उनको तस्सवारात में आने नही दिया
हालात ने यह लुत्फ़ उठाने नही दिया
गम मेरे साथ-साथ बहुत दूर तक गए
शिकवा मगर जुबां पर आने नही दिया
दस्तार गिर गई तो गिरे सर तो बच गया
कुछ बेहिसो को ज़र्फ़ खुदा ने नही दिया
था कितना दिल शिकन तेरी यादों का मरहला
आँखों को फिर भी अश्क बहाने नही दिया
मजबूरियों ने पाँव में ज़ंजीर डाल दी
हमने खुशी से आपको जाने नही दिया
मैं ख़ुद ही अपनी राह का paththar bana रहा
ऐसा nhi की साथ दुआ ने नही दिया
"aleem" मेरी saada dili ने कभी मुझे
aaina दोस्तों को dikhaane नही दिया


ग़ज़ल

उल्फत का यह नशा है पीने में क्या खराबी
कायम वफ़ा है दिल में मिलती है कामयाबी,
बेदाग़ ज़िन्दगी का मुझको सिला मिला है
करता हु दिल से बातें कुछ भी नही किताबी
तनहा जिए बहुत दिन मंजिल पर अगया हूँ
नींदों में हर घड़ी अब सपने तो है गुलाबी
अब दूर रहना मुझको हरगिज़ नही गवारा
किस्मत मिलाये जिससे मिलने में क्या खराबी
'अलीम' ज़िन्दगी का रूतबा बहुत बड़ा है
दुनिया कहे भले ही कहती रहे शराबी

Sunday, May 3, 2009

ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहि