Thursday, April 30, 2009

ग़ज़ल

मेरे अश्क जितने निकलते रहे
दिए मेरे पलकों पर जलते रहे
वोह लम्हों की कैसी मुलाकात थी
की ता जीस्त अरमा मचलते रहे
वो शिकवे गिले करके चुप हो गए
मगर करवटे हम बदलते रहे
किसी ने बुझाने की न कोशिश की
जो घर जल रहे थे वो जलते रहे
नशेमन हमारा जला तो जला
तुम्हरे तो अरमा निकलते रहे
"अलीम" जलने वालो का क्या तज़किरा
सदा जलने वाले तो जलते रहे

ghazal

ग़ज़ल

जुस्तुजू खोये हुए की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब् सफर करते रहे
रास्तों का इल्म था हमको न सम्तो की ख़बर
शहरे न मालूम की चाहत मगर करते रहे
हमने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर को
तेरे जाने की ख़बर दीवारों दर करते रहे
वोह न आएगा हमे मालूम था उस शाम भी
इंतज़ार उसका मगर कुछ सोचकर करते रहे
आज आया है हमे भी उन उदानो का ख्याल
जिनके तेरे जोमे में बे बालो पर करते रहे \

Wednesday, April 29, 2009

ghazal

जिंदगानी की हकीकत को बताने वाला

कोई मिल जाए मुझे अक्स दिखाने वाला

चौक जाता है हथेली को मेरी देख के क्यों

सबके हाथों की लकीरों को बताने वाला

कुदरती खेल का नायाब नमूना यह है

रोता रहता है सदा सबको हसाने वाला

मेरे दुश्मन तू मुझे मार मगर पहले ही

जा उसे मार जो है मुझे बचाने वाला

अब इरादों की में कश्ती को बचाऊ कैसे

लूट लेता है मुझे नाव चलाने वाला

किस तरह मुल्क की तस्वीर संवर पाएगी

रहनुमा हो गया है दंगे को कराने वाला

मई वसूलो पर सदा चलता रहूँगा अलीम

कोई मिल जाए मुझे राह दिखाने वाला

ghazal

Tuesday, April 28, 2009

ग़ज़ल

आइने मे देखा तो, मुझे मेरा चेहरा अजनबी सा लगाlabon पर हसी थी, आखो मे मुझे पानी सालगा
teri हसरतो को हमने अपना मकसद बना liyaa
आज मुझे अपनी हस्ति पर, तेरा वजुद हावी सा लगा
एक वक़्त था, जब आप दुर रह के भी करीब थी
कुछ पल का ये फ़सला भी बरसो का सा लगा
jinke सवालो को , हम कभी समझ ही ना पाये
huaa पेमाना, हमेशा मुझको खाली सा lagaa
ye क्यु आप लेकर आ गये, प्यार का नूर मेरी राहो में
रोशनी का हर पल मुझे, अन्धेरे की कहानी सा लगा

Friday, April 17, 2009

वोटर मज़हब , जात, एलाकायियत के खानों में बात चुके है (कब तक)

जम्हूरियत का बेताल aapse एक sawaal pochta की हमारे mulk का voter अपने ही वोट से ठगा महसूस करता है अपनी ही हुकूमत से shikast और अपनी kismat को kosne पर majboor क्यों है ? जो एक mudda ही bankar रह गया आम public के के लिए.......आज वोटर mazhab , zaat और elaakaaiyat में poori trah bet chuke है हर कोई neta nagri inke zameer पर इस qadar haavi है की आम janta के sochne का nazariya एकदम से khatm होने की kagaar पर khada है , हर कोई रोज़ एक नयी parti का janm होता है और वोह firke में tabdeel hokar sayasat की rudaad लिखने को tyyar khade होते है आज आम insaan को एक voting machine samjhe जाने लगा है हमारी हम अपनी nazron में gira दिए जा chuke है kyoki यह हमारा istemaal करना achchi trah से जान chuke है अगर janta का वोट bank को badhana है तो inke zazbaato से khilwaad करना avshayak है नहीं तो हमारी rajniti की dukaan न चल paane में kamyab होगी.......लेकिन कब तक......यह sochne और samajhne wali बात है ....कब हम bholi janta को bahkaane में safal हो ge यह आने वाला वक़्त ज़रूर batayega .....कब तक यह hume , mazhab , zaat और elaakayiyat तक mahdood rakhege एक दिन वक़्त का palda हमारे hath में होगा जब हम gahrai से inhe samajhne में kaamyab हो jayege inke napaak irado को bhaanp jaayege एक दिन wo zarur dekhenge ...... wo lamha दूर नहीं जब हम अपने आप में एक taakat के रूप में ubhar कर inke saamne होंगे अगर आज हमारी akl पर taala लगा है कल को यह gumnaami bhari ज़िन्दगी के mukhaute को दूर phekne हम zarur kaamyab होंगे तब हम इस dharm nirpekshya देश की taakat के zarur ubhre ge उस दिन हमारे लिए और देश के लिए savera होगा wo वक़्त bilkul भी दूर नहीं जब हम इन mazhab , zaat , और elakayiyat को दूर phekne में bilkul kamyaab होंगे .....ant में मेरा kahna इस बात का है आप इन fuzool baaton के chakkar me न aakar (mazhab, zaat) aadi आप अपने akl mend होने का सही nishaani दे taki एक नए देश और janta की हम staphna कर paane में safal और इन कुछ gande netao के maksad पर पानी फिर सके ......

ग़ज़ल

तू किसी रास्ते का मुसाफिर रहे
तेरी एक - एक ठोकर उठा लाऊँगा
अपनी बेचैन पलकों से चुन-चुन के मै
तेरे रास्ते का patthar उठा लाऊँगा
मै harf प्यार का मोड़ सकता नही
zindagi me tujhe छोड़ सकता नही
की तू अगर मेरे घर तक नही आयेगा
मै तेरे घर के pass यह घर उठा लाऊँगा
की ansuvo का मौसम चला जाएगा
तेरे lab पे tabassum न ajayega
मुझको दिल की ज़मीन से आवाज़ दे
asmaan तेरे der पर उठा लाऊँगा
यह zamaana है bahra fakat हम nasheen
chnd katre न उससे मिल payega
एक किसी रोज़ दिल से आवाज़ दे
तेरी खातिर samandar उठा लाऊँगा

Friday, April 3, 2009

ग़ज़ल

दिल मैं हम बस जाएँगे,
तमन्ना हो अगर मिलने की, तो बंद आँखों मैं नज़र आएँगे।
लम्हा लम्हा वक़्त गुज़ेर जाएँगा,
चँद लम्हो मैं दामन छूट जाएगा,
आज वक़्त है दो बातें कर लो हमसे,
कल क्या पता कौन आपके ज़िंदगी मैं आ जाएगा।
पास आकर सभी दूर चले जाते हैं,
हम अकेले थे अकेले ही रेह जाते हैं,
दिल का दर्द किससे दिखाए,
मरहम लगाने वेल ही ज़ख़्म दे जाते हैं,
वक़्त तो हूमें भुला चुका है,
मुक़द्दर भी ना भुला दे,
दोस्ती दिल से हम इसीलिए नहीं करते,
क्यू के डरते हैं,कोई फिर से ना रुला दे,
ज़िंदगी मैं हमेशा नये लोग मिलेंगे,
कहीं ज़ियादा तो कहीं काम मिलेंगे,
ऐतबार ज़रा सोच कर करना,
मुमकिन नही हैर जगह तुम्हे हम मिलेंगे।
ख़ुशबो की तरह आपके पास बिखर जाएँगे,
सुकों बन कर दिल मे उतर जाएँगे,
मेहसूस करने की कोशिश तो कीजिए,
दूर होते हो भी पास नेज़र आएँ