हर एक इंसान को अच्छे रिश्ते अच्छे संस्कार और मेल जोल की ज़रूरत पड़ती है ताकि उसकी दुनयावी लिहाज़ से उसकी सारी ज़रुरियात (आवश्यकता) क़ाबिल ए गौर हो और वो एक अच्छा बाशिंदा (नागरिक) बन कर अपने मुल्क के लिए कुछ कर सके यही एक देशभक्ति है सो इन्सान को चाहिए कि आपसी ताल्लुकात बनाके एक दुसरे को लेकर चले जिससे हर एक कि ज़रुरियात पूरी हो सके और इंशाअल्लाह मेरी यह कोशिश होगी आप और हम पर कोई भी परेशानी आये, हम इससे निबटकर अपने मुल्क की हिफाज़त कर सके - आमीन! (सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा)
Thursday, April 30, 2009
ग़ज़ल
दिए मेरे पलकों पर जलते रहे
वोह लम्हों की कैसी मुलाकात थी
की ता जीस्त अरमा मचलते रहे
वो शिकवे गिले करके चुप हो गए
मगर करवटे हम बदलते रहे
किसी ने बुझाने की न कोशिश की
जो घर जल रहे थे वो जलते रहे
नशेमन हमारा जला तो जला
तुम्हरे तो अरमा निकलते रहे
"अलीम" जलने वालो का क्या तज़किरा
सदा जलने वाले तो जलते रहे
ग़ज़ल
चाँद के हमराह हम हर शब् सफर करते रहे
रास्तों का इल्म था हमको न सम्तो की ख़बर
शहरे न मालूम की चाहत मगर करते रहे
हमने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर को
तेरे जाने की ख़बर दीवारों दर करते रहे
वोह न आएगा हमे मालूम था उस शाम भी
इंतज़ार उसका मगर कुछ सोचकर करते रहे
आज आया है हमे भी उन उदानो का ख्याल
जिनके तेरे जोमे में बे बालो पर करते रहे \
Wednesday, April 29, 2009
ghazal
जिंदगानी की हकीकत को बताने वाला
कोई मिल जाए मुझे अक्स दिखाने वाला
चौक जाता है हथेली को मेरी देख के क्यों
सबके हाथों की लकीरों को बताने वाला
कुदरती खेल का नायाब नमूना यह है
रोता रहता है सदा सबको हसाने वाला
मेरे दुश्मन तू मुझे मार मगर पहले ही
जा उसे मार जो है मुझे बचाने वाला
अब इरादों की में कश्ती को बचाऊ कैसे
लूट लेता है मुझे नाव चलाने वाला
किस तरह मुल्क की तस्वीर संवर पाएगी
रहनुमा हो गया है दंगे को कराने वाला
मई वसूलो पर सदा चलता रहूँगा अलीम
कोई मिल जाए मुझे राह दिखाने वाला
Tuesday, April 28, 2009
ग़ज़ल
teri हसरतो को हमने अपना मकसद बना liyaa
आज मुझे अपनी हस्ति पर, तेरा वजुद हावी सा लगा
एक वक़्त था, जब आप दुर रह के भी करीब थी
कुछ पल का ये फ़सला भी बरसो का सा लगा
jinke सवालो को , हम कभी समझ ही ना पाये
huaa पेमाना, हमेशा मुझको खाली सा lagaa
ye क्यु आप लेकर आ गये, प्यार का नूर मेरी राहो में
रोशनी का हर पल मुझे, अन्धेरे की कहानी सा लगा
Friday, April 17, 2009
वोटर मज़हब , जात, एलाकायियत के खानों में बात चुके है (कब तक)
ग़ज़ल
तेरी एक - एक ठोकर उठा लाऊँगा
अपनी बेचैन पलकों से चुन-चुन के मै
तेरे रास्ते का patthar उठा लाऊँगा
मै harf प्यार का मोड़ सकता नही
zindagi me tujhe छोड़ सकता नही
की तू अगर मेरे घर तक नही आयेगा
मै तेरे घर के pass यह घर उठा लाऊँगा
की ansuvo का मौसम चला जाएगा
तेरे lab पे tabassum न ajayega
मुझको दिल की ज़मीन से आवाज़ दे
asmaan तेरे der पर उठा लाऊँगा
यह zamaana है bahra fakat हम nasheen
chnd katre न उससे मिल payega
एक किसी रोज़ दिल से आवाज़ दे
तेरी खातिर samandar उठा लाऊँगा
Friday, April 3, 2009
ग़ज़ल
तमन्ना हो अगर मिलने की, तो बंद आँखों मैं नज़र आएँगे।
लम्हा लम्हा वक़्त गुज़ेर जाएँगा,
चँद लम्हो मैं दामन छूट जाएगा,
आज वक़्त है दो बातें कर लो हमसे,
कल क्या पता कौन आपके ज़िंदगी मैं आ जाएगा।
पास आकर सभी दूर चले जाते हैं,
हम अकेले थे अकेले ही रेह जाते हैं,
दिल का दर्द किससे दिखाए,
मरहम लगाने वेल ही ज़ख़्म दे जाते हैं,
वक़्त तो हूमें भुला चुका है,
मुक़द्दर भी ना भुला दे,
दोस्ती दिल से हम इसीलिए नहीं करते,
क्यू के डरते हैं,कोई फिर से ना रुला दे,
ज़िंदगी मैं हमेशा नये लोग मिलेंगे,
कहीं ज़ियादा तो कहीं काम मिलेंगे,
ऐतबार ज़रा सोच कर करना,
मुमकिन नही हैर जगह तुम्हे हम मिलेंगे।
ख़ुशबो की तरह आपके पास बिखर जाएँगे,
सुकों बन कर दिल मे उतर जाएँगे,
मेहसूस करने की कोशिश तो कीजिए,
दूर होते हो भी पास नेज़र आएँ