Thursday, May 7, 2009

ग़ज़ल

गरीबो की दुनिया में ख़्वाबों की आहट
लो आने लगी इन्कलाबों की आहट
हुआ खुश्क आँखों का पानी भी अब तो
समंदर में आई शराबों की आहट
मुझे मेरे बिस्तर पर कांटे मिले है
सुनाई सी दी है गुलाबों की आहट
लिखा उसने कुछ भी नही मुझको ख़त में
मगर आरही है जवाबों की आहट
उजालों को अब रास आने लगी है
रूखों से सरकते नकाबों की आहट
वही लोग दुनिया में पिछडे हुए है
नही सुन सके जो किताबों की आहट
सभी आशियानों में सोये है "अलीम"
करीब आरही है उकाबों की आहट

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