Wednesday, May 13, 2009

ग़ज़ल

बहुत खूब्सिरत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
कभी जो मै कह दू मोहब्बत है तुमसे
तो मुझको खुदारा ग़लत मत समझना
की मेरी ज़रूरत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
है फूलों की डाली यह बाहें यह बाहें तुम्हारी
है खामोश जादू निगाहें तुम्हारी
जो काटें हो सब अपने दामन में रख लू
सजाऊ मै कलियों से राहें तुम्हारी
नज़र से ज़माने की ख़ुद को बचाना
किसी और से देखो दिल न लगाना
की मेरी अमानत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
है चेहरा तुम्हारा की दिन है सुनेहरा
और उसपर यह काली घटाओं का पहरा
गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है
यह लैब है तुम्हारे की खिलता चमन है
बिखेरो जो जुल्फे तो शर्माए बादल
यह "अलीम" तो हो जाए पागल
वोह पाकीजा मूरत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
जो बन के मुस्कुराती है अक्सर
शबे हिज्र में जो रुलाती है अक्सर
जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे
जो शायर को दे जाए पहलु ग़ज़ल की
छुपाना जो चाहे छुपाई न जाए
भुलाना जो चाहे भुलाई न जाए
वोह पहली मोहब्बत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
बहुत खूसूरत हो तम

अलीम आज़मी

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