Tuesday, May 5, 2009

ग़ज़ल


क्या समा था बहार से पहले
गम कहा था बहार से पहले
अब तमाशा है चार तिनकों का
आशियाँ था बहार से पहले
ए मेरे दिल के दाग तू ही बता
तू कहा था बहार से पहले
पिछली शब् में खिजां का सन्नाटा
हम ज़बान था बहार से पहले
चांदनी में यह आग का दरिया
कब रवां था बहार से पहले
लुट गई दिल की ज़िन्दगी "अलीम"
दिल जवान था बहार से पहले

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