Monday, August 17, 2009

अशार

मैं तो एक खवाब हूँ खो न जाऊं कही
इन निगाहों में मुझको बसा लीजिये
याद तनहाई में जब सताए कोई
बस अलीम की ग़ज़ल गुनगुना लीजिये

अशार
सितम मत पूछिए कैसे मेरा दिलदार करता है
कभी इनकार करता है कभी इज़हार करता है
जुबां से तो कभी इज़हार उल्फत वो नही करता
निगाहों से यह लगता है वोह मुझे प्यार करता है

ग़ज़ल

मैं तेरे दिल को सुकून दूँगा तेरे दिल नज़र को करार दूँगा
बस अपने दिल में जगह दे मुझको मैं तेरी दुनिया संवार दूँगा
कोई नज़र में बसा ले मुझको नही नही यह मुझे गवारा
तेरी अमानत है यह प्यार मेरा तुझे यह इख्तियार दूँगा
खुश परस्तों से राबता क्या गरज बन्दों से वास्ता क्या
जो मेरे सुख दुःख को अपना समझे उसी को अपना प्यार दूँगा
हज़ार मेरी वफ़ा से दामन बचाओ लेकिन मुझे यकीन है
तुम्हारे दिल में भी किसी दिन वफ़ा का जज्बा उभार दूँगा
तुम्हारी यह जान यह इज्ज़त हकीकतन है मेरी बदौलत
जहाँ में खातिर फिरो गे ठोकर मई जब नज़र से उतार दूँगा
"अलीम" ज़माना कदम कदम पर हज़ार कांटे बिछाएं फिर भी
यह मेरा वादा है ज़िन्दगी से की रूप तेरा निखार दूँगा

Friday, August 14, 2009

ग़ज़ल

वो जो मिलता रहा बहाने से
पास आता नही बुलाने से
लाख छुपने की कोशिशें कर लें
प्यार छुपता नही छुपाने से
वो मिलता रहा अकेले में
अब बताता फिरे ज़माने से
मुझसे रूठा तो पास था मेरे
दूर होने लगा मनाने से
जाम पीता था होश रहता था
बा ख़बर हूँ मै ना पिलाने से
उसके दरपर जो सर झुके "अलीम"
अब उठता नही उठाने से

ग़ज़ल

जी में आए मुझे वोह सज़ा दीजिये
पर मेरी खता पहले बता दीजिये ।
कौन कहता है दवा भी पिला दीजिये
आप जीने की दिल से दुआ दीजिये ।
आप मुलजिम भी आप मुंसफ भी है
सोच कर यह ज़रा फैसला कीजिये ।
आप मेरी हैं मेरी रहेंगी सदा
सारी दुनिया को इतना बता दीजिये ।
जाम मीना सुराही से क्या वास्ता
आप आँखों से अपनी पिला दीजिये ।
बात करती हो मेरी जान ऐसे करो
मत किसी गैर का वास्ता दीजिये ।

Tuesday, August 11, 2009

ग़ज़ल

वफाओं के बदले यह क्या दे रहे है
मुझे मेरे अपने दगा दे रहे है
जो पौधे लगाये थे चाहत से मैंने
वोह नफरत की क्योंकर हवा दे रहे है
कभी मेरे हमदम बिचदना ना मुझसे
मोहब्बत के मौसम मज़ा दे रहे है
हमारे दिलों से खेले है बरसों
उन्हें अब तलक हम दुआ दे रहे है
मैं हंसने की बातें करू "अलीम " कैसे
मुझे मेरे अपने रुला दे रहे है ।

ग़ज़ल

वोह मासूम चेहरा खूबसूरत निगाहें
कोई भी उन्हें देखे हो जाए पागल
वोह दिलकश अदाएं वो बलखाती जुल्फें
समंदर भी देखे तो मच जाए उनमे हलचल
वोह उनका अंदाजे चलना उसपर इठलाना
वोह उनका शर्माना और मुस्कुराना
वोह मासूम चेहरा ......................
कोई भी उन्हें ...........................
वोह हुस्न की मलका लगे जैसे कोई शहजादी
जो पलट कर देखे तो बजे दिल के तार मुसलसल
वोह मासूम चेहरा .................
कोई भी उन्हें .....................

Wednesday, August 5, 2009

ग़ज़ल

यूँ लगा उनके रूठ जाने से
अब वफ़ा उठ गई ज़माने से
ऐसे अनजान बन गए गोया
आशना वो न थे फ़साने से
सर्द रुत के हँसी सवेरे में
वो बिचादते है किस बहने से
मैंने पलकों पे जो सजाये थे
खवाब टूटे है वो सुहाने से
कौन " अलीम" उस नगर जाए
शहर वीरान है उनके जाने से

ग़ज़ल

अब उनकी बेरुखी का न शिकवा करेंगे हम
लेकिन यह सच है उनको ही चाहा करेंगे हम ।
जायेंगे वो हमारी गली से गु़ज़र के जब
बेबस निगाह से उन्हें देखा करेंगे हम ।
तन्हाईयों में याद जब उनकी सताएगी
दिल और जिगर को थाम के तदपा करेंगे हम
करते नही कबूल मेरी बंदगी तो क्या
बस उनके नक्शे पा पे ही सजदा करेंगे हम ।
"अलीम" अगर वो यारे हसीं मेहरबान हो
जीने की थोडी और तम्मान्ना करेंगे हम ।