Tuesday, May 5, 2009

ग़ज़ल

जो समझते ही नही वक्त की कीमत क्या है
उनको एहसास दिलाने की ज़रूरत क्या है
तुम ही बतलाओ सरे राह ये चलते चलते
नाजो अंदाज़ दिखाने की यह आदत क्या है
बेचकर अपनी अना पूछ रहे हो हमसे
शर्म क्या है यह हया क्या है नदामत क्या है
भाई भाई का यहा हो गया दुश्मन कैसे
कोई बतलाये तो आख़िर यह सियासत क्या है
बाखुदा कोई नही पूछने वाला दिल से

ग़ज़ल


क्या समा था बहार से पहले
गम कहा था बहार से पहले
अब तमाशा है चार तिनकों का
आशियाँ था बहार से पहले
ए मेरे दिल के दाग तू ही बता
तू कहा था बहार से पहले
पिछली शब् में खिजां का सन्नाटा
हम ज़बान था बहार से पहले
चांदनी में यह आग का दरिया
कब रवां था बहार से पहले
लुट गई दिल की ज़िन्दगी "अलीम"
दिल जवान था बहार से पहले
उनको तस्सवारात में आने नही दिया
हालात ने यह लुत्फ़ उठाने नही दिया
गम मेरे साथ-साथ बहुत दूर तक गए
शिकवा मगर जुबां पर आने नही दिया
दस्तार गिर गई तो गिरे सर तो बच गया
कुछ बेहिसो को ज़र्फ़ खुदा ने नही दिया
था कितना दिल शिकन तेरी यादों का मरहला
आँखों को फिर भी अश्क बहाने नही दिया
मजबूरियों ने पाँव में ज़ंजीर डाल दी
हमने खुशी से आपको जाने नही दिया
मैं ख़ुद ही अपनी राह का paththar bana रहा
ऐसा nhi की साथ दुआ ने नही दिया
"aleem" मेरी saada dili ने कभी मुझे
aaina दोस्तों को dikhaane नही दिया


ग़ज़ल

उल्फत का यह नशा है पीने में क्या खराबी
कायम वफ़ा है दिल में मिलती है कामयाबी,
बेदाग़ ज़िन्दगी का मुझको सिला मिला है
करता हु दिल से बातें कुछ भी नही किताबी
तनहा जिए बहुत दिन मंजिल पर अगया हूँ
नींदों में हर घड़ी अब सपने तो है गुलाबी
अब दूर रहना मुझको हरगिज़ नही गवारा
किस्मत मिलाये जिससे मिलने में क्या खराबी
'अलीम' ज़िन्दगी का रूतबा बहुत बड़ा है
दुनिया कहे भले ही कहती रहे शराबी

Sunday, May 3, 2009

ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहि

Thursday, April 30, 2009

ग़ज़ल

मेरे अश्क जितने निकलते रहे
दिए मेरे पलकों पर जलते रहे
वोह लम्हों की कैसी मुलाकात थी
की ता जीस्त अरमा मचलते रहे
वो शिकवे गिले करके चुप हो गए
मगर करवटे हम बदलते रहे
किसी ने बुझाने की न कोशिश की
जो घर जल रहे थे वो जलते रहे
नशेमन हमारा जला तो जला
तुम्हरे तो अरमा निकलते रहे
"अलीम" जलने वालो का क्या तज़किरा
सदा जलने वाले तो जलते रहे

ghazal